कांग्रेस के तय भविष्य के कारण!

\"\"
डॉ कौस्तुभ नारायण मिश्र

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की पृष्ठभूमि ही कुछ ऐसी है कि उसके सामने आज की परिस्थिति उत्पन्न हो रही है। किसी भी संगठन या विचारधारा की नींव जब पूर्वाग्रह से ग्रसित होगी और उसकी स्थापना में, स्थापित करने वालों का कोई छिपा हुआ एजेण्डा या कार्यसूची होगी तो निश्चित रूप से उसका परिणाम अच्छा नहीं होगा। निश्चित रूप से ऐसा संगठन और ऐसी विचारधारा स्वयं उस संगठन एवं विचारधारा तथा व्यापक समाज एवं देश हित में कोई सकारात्मक भूमिका का न तो निर्वाह करेगी और न ही निर्वाह करने की उसकी कोई योग्यता एवं क्षमता ही होगी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाने वाले लॉर्ड डफरिन, ए ओ ह्यूम, सर सैयद अहमद व्योमेश चन्द्र बनर्जी आदि और इनके सलाहकारों के कार्य एवं मार्ग को निश्चित रूप से भारतीय समाज और भारत देश का हितैषी किसी भी रूप में कहना न्याय संगत नहीं हो सकता। पूर्वाग्रह के कारण इनको कोई महिमामण्डित करके बड़ा व्यक्ति घोषित कर सकता है; इतिहास से छेड़छाड़ कर सकता है; और लोक में गलत सूचनाएँ प्रसारित कर सकता है; लेकिन सत्य का दूरगामी साक्षात्कार और स्थापना नहीं कर सकता। इस आलोक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस या कांग्रेस आई या कांग्रेस पार्टी के सामने वर्तमान समय में जो संकट और चुनौतियाँ हैं, उसकी पृष्ठभूमि में या मूल में उक्त बातें स्वाभाविक रूप से अन्तर्निहित हैं और इसी कारण वर्तमान समय में कांग्रेस की दुर्दशा और शून्य होते भविष्य के पीछे निम्नलिखित तीन कारण स्पष्ट रूप से बताये और गिनाये जा सकते हैं।

\"\"

इनमें पहला प्रमुख कारण है, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना नेहरू और बाद में नेहरू-गाँधी परिवार के उज्जवल भविष्य की रक्षा करने के लिये किया गया और इस कारण नेहरू-गाँधी या नेहरू परिवार ने इस स्वतन्त्रता आन्दोलन के राजनीतिक दल और वर्तमान समय में सत्ता के लिये व्याकुल राजनीतिक दल को अपनी पुश्तैनी या पारिवारिक जागीर या सम्पत्ति समझ लिया। ऐसा कहना इसलिये समीचीन है; क्योंकि लक्ष्मी नारायण नेहरू, गंगाधर नेहरू, मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, इन्दिरा गाँधी, सोनिया गाँधी और अब राहुल गाँधी जैसी सात पीढ़ियों ने अब तक कोई भी धन्धा रोजगार व्यापार नौकरी या अन्य कार्य नहीं किया, जिसके कारण व्यक्ति के पास चल अचल सम्पत्ति व्यापक पैमाने पर स्थापित हो या इनके नाम पर अकूत सम्पदा वाले ट्रस्ट या सोसाइटी स्थापित हो और उसकी दिखावटी गतिविधियाँ संचालित होती रहें। ऐसा भी नहीं है कि इस पार्टी या इस परिवार कि कोई राजघराने जैसी वसीयत रही हो। एक सामान्य निम्न मध्यवर्गीय परिवार से सम्बन्धित लक्ष्मी नारायण नेहरू ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी में नौकरी करना आरम्भ किया और उस नौकरी के माध्यम से अंग्रेज नौकरशाहों और उनके आकाओं से निकट का सम्बन्ध स्थापित करके अपना रसूख मजबूत किया और जिसके कारण उनकी क्रमशः आगे बढ़ती हुई पीढ़ी ने उसका उपयोग दुरुपयोग करके ना केवल अकूत सम्पदा अर्जित किया; बल्कि अधिकार भाव भी भारत देश और भारतीय जनता के ऊपर खूब जमाया। अर्थात इन लोगों ने राजनीति करने के अलावा कोई ऐसा कार्य नहीं किया, जिसके आधार पर सम्पदा अर्जित की जाती हो। राजनीति स्वाभाविक रूप से या प्रथम दृष्टया सम्पत्ति इकट्ठा करने का न तो माध्यम होती है और ना ही सम्पत्ति इकट्ठा करने का नियम सम्मत मार्ग ही प्रशस्त करती है। राजनीति में श्रम समय धन तथा मन मस्तिष्क का, समर्पण निष्ठा एवं त्याग पूर्वक करना होता है। एवं जो व्यक्ति निष्ठा एवं त्यागपूर्वक, ईमानदारी एवं समर्पण सहित राजनीति का कार्य करता है, वह व्यक्ति किसी भी दशा में सम्पत्ति अर्जित नहीं कर सकता! तो फिर सवाल उठता है? कि वर्तमान समय में कांग्रेस के रहनुमा इस परिवार के पास इतनी सम्पत्ति कहाँ से और कैसे आयी?!? जिसके आधार पर इस परिवार के लोग विदेशों में रहने लगे; विदेशी गाड़ियों में चलने लगे; विदेशों में मकान बनाने लगे; विदेशों से कपड़े धूलके आने लगे और विदेशियों से सम्बन्ध बनाने लगे!। यह यक्ष प्रश्न जब तक भारतीय जनमानस के मन पर जमा रहेगा और उसको इसका सटीक उत्तर नहीं मिलेगा, तब तक कांग्रेस का भविष्य अंधकार में रहेगा यह तय है और जब तक कांग्रेस इन प्रश्नों का समुचित और सटीक उत्तर देकर भारत केन्द्रित राजनीति की स्थापना नहीं करेगी, तब तक कांग्रेसका पुनरुद्धार होना असम्भव है।

तीसरा महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि भारत के जनमानस में कांग्रेस के प्रति और कांग्रेस के रहनुमा परिवार के प्रति यह धारणा स्थापित हो चुकी है कि, इनकी मानसिकता अभारतीय अर्थात विदेशी है और यह लोग भारत का हित नहीं चाहते। वह किसी भी रुप में सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी और इनके रिश्ते या सम्बन्धों के विदेशी सम्बन्धों के कारण इन पर स्वाभाविक रूप से विश्वास नहीं करते।

कांग्रेस की वर्तमान दुर्दशा का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि कांग्रेस का प्रतिमान या पर्यायवाची बन चुके नेहरू या गाँधी नेहरू परिवार के अहंकार की सामान्य सतह पर आकर कार्यकर्ता भाव में लोगों से और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से जुड़ने का नहीं होगा, तब तक भी कांग्रेस का सुधार नहीं हो सकता। आज के समय में भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेतागण जो 40 50 60 वर्ष से कांग्रेस की सेवा में हैं। उनकी, सोनिया राहुल और प्रियंका के सामने कोई हैशियत और सामर्थ्य नहीं है और ना ही किसी प्रकार का प्रश्न पूछने व्यक्तिगत या सार्वजनिक रूप से उनके पास कोई हिम्मत होती है। वे केवल इस परिवार के अयोग्य उत्तराधिकारी या केवल चाकरी कर सकते हैं। आज भी एकमुश्त या संगठित होकर इनके सामने कांग्रेस के भविष्य को ध्यान में रखते हुये कोई विकल्प नहीं प्रस्तुत कर सकते हैं। ऐसी दशा में कांग्रेस के इस परिवार से बाहर के नेताओं और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से भी आप कांग्रेस के पुनरुद्धार की उम्मीद नहीं कर सकते; क्योंकि इस परिवार के बाहर के कांग्रेसियों में आपस में एकजुटता नहीं है और वे स्वयं भी यह मान बैठे हैं कि कांग्रेस के भविष्य और कर्णधार नेहरू गाँधी परिवार और उसके योग्य योग्य, अपात्र या सुपात्र उत्तराधिकारी ही हैं और उन्हीं के सहारे कांग्रेस में एकता बनी रह सकती है। अन्यथा कांग्रेस का टूटकर और भी जल्दी बिखर कर शून्य में विलीन हो जायेगी। कांग्रेस के नेताओं के मन में अथवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के मन में जब तक इस तरह की आशंका भ्रम या डर समाया हुआ है, तब तक भी कांग्रेस के उध्वार की कोई गुंजाइश नहीं बनती है और ऐसे वातावरण में कांग्रेस का भविष्य अन्धकार में होने से कोई रोक नहीं सकता।

एक तीसरा महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि भारत के जनमानस में कांग्रेस के प्रति और कांग्रेस के रहनुमा परिवार के प्रति यह धारणा स्थापित हो चुकी है कि, इनकी मानसिकता अभारतीय अर्थात विदेशी है और यह लोग भारत का हित नहीं चाहते। वह किसी भी रुप में सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी और इनके रिश्ते या सम्बन्धों के विदेशी सम्बन्धों के कारण इन पर स्वाभाविक रूप से विश्वास नहीं करते। सोनिया गाँधी की गतिविधियाँ और चर्च के प्रति उनके मोह और उसका सार्वजनिक होना; राहुल गाँधी का इस अवस्था तक अविवाहित रहना और लगातार विदेशों में पर्यटन केन्द्रों पर भ्रमण करना और उस विषय में नकारात्मक प्रचार होना तथा प्रियंका गाँधी का एक ऐसे परिवार में विवाह होना, जिस परिवार की पृष्ठभूमि और गतिविधि कहीं से भी भारतीय मानसिकता एवं ईमानदारी तथा नैतिकता की नहीं है। यह भी एक ऐसा कारण है जो कांग्रेस को ठीक धरातल पर पुनः आने से रोक रहा है। कांग्रेस को 2004 में जो अवसर प्राप्त हुआ था, उसका दस वर्ष में कांग्रेस ने अपने आप को स्थापित करने में उपयोग नहीं किया; बल्कि ऐसे व्यक्ति को प्रधानमन्त्री बनाकर रखा, जिससे कांग्रेस का और परिवार विशेष का भला होता रहे; सम्पत्तियाँ आती रहें; सम्पत्ति विदेश में जाति रहे और भारत का वास्तविक हित नकारात्मक रूप में प्रभावित होता रहे। दस वर्ष का इनका शासन भारत की जनता इसी रूप में स्वीकार और मानती है। सत्य और असत्य क्या है? यह काल्पनिक रूप से सत्य या असत्य की स्थापना कार्य करने वाले के बस में नहीं होता; इसकी स्थापना लोक और समाज करता है और लोक एवं समाज में जो स्थापित हो जाता है, उसको प्रायोजित मीडिया के माध्यम से बदलना सम्भव नहीं होता। प्रायोजित मीडिया भी उसी चीज को स्थापित और बलवती कर पाती है, जिसको लोक और समाज सहजता से स्वीकार करता है। इससे सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि भारत का लोक और भारतीय समाज, कश्मीर से कन्याकुमारी और कक्ष से कामरूप तक लगभग एक जैसा ही सोचता है और उसका मूल्यांकन यूरोप अमेरिका या चीन जापान की दृष्टि से नहीं किया जा सकता, न ही इनके आधार पर उसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन किया जा सकता है। भारत की जनता दुनिया में ऐसी इकलौती जनता है, जो दिल और दिमाग दोनों से सोचती है और दोनों का एक साथ प्रयोग करती है। दुनिया में लोग दिमाग का प्रयोग अधिक करते हैं और इसलिये व्यक्ति स्वयं में बिखरा हुआ, परिवार स्वयं में बिखरा हुआ और समाज भी स्वयं में बिखरा हुआ शेष विश्व में दिखाई पड़ता है। यह भावना एवं सम्वेदना प्रधान देश के साथ-साथ, विवेक और बुध्दि प्रधान देश भी है; जो व्यक्ति की निजता और व्यक्ति के सामाजिकता का एक साथ मूल्याँकन करके निर्णय करती है। इस बात का भी जब तक कांग्रेस संज्ञान नहीं लेगी और भारत केन्द्रित राजनीति की दिशा कांग्रेस की दिशा नहीं बनेगी, तब तक कांग्रेस की दुर्दशा और अन्धकार में जाने से उसके भविष्य को कोई रोक नहीं सकता।