पन्द्रह अगस्त 1947 को भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू ने दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर से भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर फहरते झण्डे अनेक सरकारी एवं गैरसरकारी भवनों व स्थानों पर दिखायी पड़ते हैं। राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री द्वारा राष्ट्र को सम्बोधन, झण्डे को फहराना, परेड, देशभक्ति के गीत, राष्ट्रगान आदि के रूप में इस दिन को राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। प्रतिवर्ष इस दिन की पूर्व संध्या पर देश के राष्ट्रपति और अगले दिन सुबह भारत के प्रधानमन्त्री लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हैं। स्वतन्त्रता के बाद भारत का विभाजन हुआ और सम्प्रदाय के आधार पर देश का एक टुकड़ा पाकिस्तान के रूप में अलग हो गया। दोनों देशों में हिंसक दंगे भड़के और साम्प्रदायिक हिंसा की अनेक घटनाएँ हुईं। विभाजन के कारण मनुष्य जाति के इतिहास में इतनी अधिक संख्या में पूरी दुनिया में लोगों का विस्थापन कभी नहीं हुआ। यह संख्या लगभग डेढ़ करोड़ थी। भारत की जनगणना 1951 के अनुसार देश विभाजन के तुरन्त बाद 70 लाख मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और लगभग 73 लाख हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आये। यह दिन सच्चे आजादी का दिन था या कुछ और? कहना कठिन है! सच में यूरोपीय व्यापारियों ने सत्रहवीं सदी से ही भारतीय उपमहाद्वीप में पैर जमाना आरम्भ कर दिया था तथा अपनी सैन्य शक्ति में बढ़ोतरी करते हुए ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने उसकी अगली सदी के अन्त तक स्थानीय भारतीय राज्यों को अपने वशीभूत करके अपने आप को पूरी तरह स्थापित कर लिया। देश के 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के बाद भारत सरकार अधिनियम 1858 के अनुसार भारत पर सीधा आधिपत्य ब्रितानी ताज (ब्रिटिश क्राउन या राजशाही) का हो गया। दशकों बाद अंग्रेजों की छुपी नीति और नागरिक समाज की चेतना के (जिसमें नागरिक समाज की चेतना को अंग्रेजी नीति ने व्योमेश चन्द्र बनर्जी, सैय्यद अहमद, ह्यूम, मोतीलाल आदि के माध्यम से दिग्भ्रमित किया) परिणामस्वरूप 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अंग्रेजों के सेफ्टी बाल्व के रूप में स्थापना नहीं, निर्माण हुई। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद का समय ब्रितानी सुधारों के काल के रूप में प्रचारित किया जाता है। जिसमें दिखावटी मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार गिना तो जाता है; लेकिन इसे भी रोलेट एक्ट की तरह दबाने वाले अधिनियम के रूप में देखना चाहिये। जिसके कारण भारतीय समाज सुधारकों द्वारा स्वशासन का आवाहन किया गया। बीती शताब्दी अर्थात 1930 के दशक के दौरान ब्रितानी कानूनों में धीरे-धीरे कहने के लिये सुधार जारी रहे; फलस्वरूप चुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज किया। उससे अगला दशक काफी राजनीतिक उथल पुथल वाला रहा। द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की सहभागिता, कांग्रेस द्वारा असहयोग का अन्तिम फैसला और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा मुस्लिम राष्ट्रवाद का प्रायोजित षड्यन्त्रकारी उदय के कारण 1947 में स्वतन्त्रता के समय तक राजनीतिक तनाव बढ़ता गया। कुल मिलाकर भारत के आनन्दोत्सव का अन्त भारत और पाकिस्तान के साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन के रूप में हुआ। दूसरा, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अपनी स्थिति के बिगड़ने के कारण अपनी शर्तों पर ब्रिटेन ने भारत को आजाद करना चाहा और भारत एवं पाकिस्तान के तत्कालीन सत्ता के लिये बेचैन लोगों ने उनकी शर्त पर स्वाधीनता अंगीकार कर लिया।
सन 1929 में लाहौर सत्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज घोषणा किया और 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस के रूप में घोषित किया। कांग्रेस ने भारत के लोगों से स्वतन्त्रता प्राप्ति तक समय-समय पर जारी किये गये कांग्रेस के निर्देशों का पालन करने एवं सविनय अवज्ञा करने के लिये कहा। यदि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस स्वाधीनता के लिये संघर्ष कर रही थी तो \’सविनय अवज्ञा\’ का क्या कोई औचित्य था। वास्तव में यह संकल्पना ही गुलाम मानसिकता का प्रकटीकरण करती है। उपरोक्त प्रकार के स्वतन्त्रता दिवस समारोह का आयोजन भारतीय नागरिकों के बीच राष्ट्रवादी भावना पैदा करने तथा स्वतन्त्रता देने पर विचार करने तथा ब्रिटिश सरकार को मजबूर करने के लिये भी किया गया; लेकिन इसके औचित्य पर सवाल बनते हैं। भा रा कांग्रेस ने 1930 और 1950 के बीच 26 जनवरी को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया। इसमें लोग मिलकर स्वतन्त्रता की शपथ लेते थे। वर्णन आता है कि ऐसी बैठकें किसी भी भाषण या उपदेश के बिना, शान्तिपूर्ण व गम्भीर होती थीं। सन 1947 में आजादी की औपचारिक घोषणा के बाद भारत का सम्विधान 26 जनवरी 1950 को प्रभाव में आया। तब से 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। सन 1946 में, ब्रिटेन की लेबर पार्टी की सरकार का राजकोष, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद खस्ताहाल हो गया था। तब उन्हें एहसास हुआ कि न तो उनके पास देश में जनादेश था और न ही अन्तराष्ट्रीय समर्थन; साथ ही वे तेजी से स्वाधीनता के लिये बेचैन होते भारत को नियन्त्रित करने के लिये देसी बलों की विश्वसनीयता भी खोते जा रहे थे। इसलिये फरवरी 1947 में वहाँ के प्रधानमन्त्री क्लीमेन्ट एटली ने यह घोषणा किया कि- \’ब्रिटिश सरकार जून 1948 से ब्रिटिश भारत को पूर्ण आत्म-प्रशासन का अधिकार प्रदान करेगी।\’ अन्तिम वायसराय लॉर्ड माउण्टबेटन ने सत्ता हस्तान्तरण की तारीख को आगे बढ़ा दिया; क्योंकि उन्हें लगा कि, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच लगातार विवाद के कारण अन्तरिम सरकार का पतन हो सकता है और ब्रिटेन अपनी शर्तों पर भारत को आजाद नहीं कर पायेगा। फिर उन्होंने सत्ता हस्तान्तरण हेतु तारीख के रूप में भारत को नीचा दिखाने के लिये, द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण की दूसरी सालगिरह 15 अगस्त को चुना। ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश भारत को दो राज्यों में विभाजित करने के विचार को 3 जून 1947 को स्वीकार कर लिया और यह भी घोषित किया कि उत्तराधिकारी सरकारों को स्वतन्त्र प्रभुत्व दिया जायेगा और ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल से अलग होने का पूर्ण अधिकार होगा। आशय यह है कि भारत को आजादी ब्रिटेन की नकारात्मक परिस्थिति के कारण, ब्रिटेन की शर्तों पर प्राप्त हुई। यूनाइटेड किंगडम की संसद के भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम 1947 के अनुसार 15 अगस्त 1947 से प्रभावी (अब बांग्लादेश सहित) ब्रिटिश भारत को भारत और पाकिस्तान नामक दो नये स्वतन्त्र उपनिवेशों में विभाजित किया और नये देशों के सम्बन्धित घटक विधायिका को पूरा संवैधानिक अधिकार अपनी शाही स्वीकृति के साथ दे दिया। बाँटकर ही जाना है और बाँटकर ही लेना है? इस संकल्पना पर विचार करने से अनेक प्रश्नों का उत्तर मिलता है। बँटवारे में लाखों शरणार्थियों ने तैयार नयी सीमाओं को पैदल पार कर सफर तय किया। पंजाब जहाँ सीमाओं ने सिख क्षेत्रों को दो हिस्सों में विभाजित किया, वहाँ बड़े पैमाने पर रक्तपात हुआ। बंगाल व बिहार में भी हिंसा भड़क गयी। नयी सीमाओं के दोनों ओर लगभग ढाई लाख लोग हिंसा में मारे गये। एक तरफ भारत में जवाहर लाल नेहरू और मुहम्मद अली जिन्नाह के नेतृत्व में स्वाधीनता का काँटेदार जश्न मनाया जा रहा था और दूसरी तरफ कत्लेआम हो रहे थे। दिनाँक 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान का स्वतन्त्रता दिवस घोषित हुआ और मुहम्मद अली जिन्ना ने कराची में पहले गवर्नर जनरल के रूप में शपथ ली। भारत में तो इन्दिरा गाँधी (प्रियदर्शिनी), मोहनदास गाँधी के माध्यम से अपने पिता के लिये प्रधानमन्त्री पद के सारे कंटक साफ करा ही चुकी थीं।
भारत की संविधान सभा ने नयी दिल्ली में डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी की अध्यक्षता में सम्विधान सभागृह में 14 अगस्त को 11 बजे अपने पाँचवे सत्र की बैठक किया। इस सत्र में जवाहर लाल नेहरू ने भारत की आजादी की घोषणा करते हुये ट्रस्ट विद डेस्टिनी (नीयति से वादा) नामक भाषण दिया। सभा के सदस्यों ने औपचारिक रूप से देश की सेवा करने की शपथ लिया। महिलाओं के एक समूह ने भारत की महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया। नेहरू ने प्रथम प्रधानमन्त्री के रूप में पद ग्रहण किया और वायसराय लॉर्ड माउण्टबेटन ने पहले गवर्नर जनरल के रूप में अपना पदभार सम्भाला। यहाँ किसी को भी भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में ह्यूम एवं माउण्टबेटन की भूमिका एवं इन दोनों से सम्बन्धित लोगों के कार्य- व्यवहार का मूल्याँकन अवश्य करना चाहिये। पन्द्रह अगस्त 1947 को सुबह 11:00 बजे संघटक सभा ने भारत की स्वतन्त्रता का समारोह प्रारम्भ किया, जिसमें अधिकारों का हस्तान्तरण किया गया और मध्यरात्रि को भारत देश ने एवं विशेष प्रकार की स्वतन्त्रता हासिल किया। जवाहरलाल नेहरू ने \’नियति से वादा\’ नामक अपना भाषण दिया और कहा- \’कई वर्ष पहले हमने नियति से एक वादा किया था और अब समय आ गया है कि हम अपना वादा निभायें; पूरी तरह न सही पर बहुत हद तक तो निभायें ही। आधी रात के समय, जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतन्त्रता के लिये जाग जायेगा। ऐसा क्षण आता है, मगर इतिहास में कम आता है। जब हम पुराने से बाहर निकल नये युग में कदम रखते हैं। जब एक युग समाप्त हो जाता है। जब एक देश की लम्बे समय से दबी हुई आत्मा मुक्त होती है। यह संयोग ही है कि इस पवित्र अवसर पर हम भारत और उसके लोगों की सेवा करने के लिये तथा सबसे बढ़कर मानवता की सेवा करने के लिये समर्पित होने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं। आज हम दुर्भाग्य के एक युग को समाप्त कर रहे हैं और भारत पुनः स्वयं को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो केवल एक क़दम है, नये अवसरों के खुलने का। इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियाँ हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना। इसका अर्थ है- निर्धनता, अज्ञानता और अवसर की असमानता मिटाना। सम्भवतः यह हमारे लिये सम्भव न हो; किन्तु जब तक लोगों कि आँखों में आँसू हैं, तब तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा। आज एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतन्त्र है। भविष्य हमें बुला रहा है। हमें कहाँ जाना चाहिये और हमें क्या करना चाहिये? जिससे हम आम आदमी, किसानों और श्रमिकों के लिये स्वतन्त्रता और अवसर ला सकें। हम निर्धनता मिटाकर एक समृद्ध, लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील देश बना सकें। हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं को बना सकें जो प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिये जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सकें।\’ आज आज यदि पचहत्तर वर्ष बाद इस \’नियति से वादा\’ नामक भाषण आप सुनेंगे तो पायेंगे कि वे काल्पनिक बनावटी बातें थीं; जिसको स्वयं नेहरू भी धरातल पर न उतारने के लिये संकल्पबद्ध थे। क्या उक्त संकल्प परिवारवाद से, भ्रष्टाचार से, भाई- भतीजावाद से, तुष्टिकरण से, अभारतीय शिक्षा पद्धति एवं योजनाओं को अपनाने आदि से प्राप्त हो सकती थी या है? उत्तर साफ है, नहीं।
पन्द्रह अगस्त के आयोजन के बाद स्कूली छात्र तथा राष्ट्रीय कैडेट कोर के सदस्य राष्ट्र गान गाते हैं। लाल किले में आयोजित देशभक्ति से ओतप्रोत इस रंगारंग कार्यक्रम को देश के सार्वजनिक प्रसारण सेवा दूरदर्शन (चैनल) द्वारा देशभर में सजीव (लाइव) प्रसारित किया जाता है। देश के सभी राज्यों की राजधानी में इस अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, तथा राज्य के सुरक्षाबल राष्ट्रध्वज को सलामी देते हैं। प्रत्येक राज्य में वहाँ के मुख्यमंत्री ध्वजारोहण करते हैं। आजादी के तीन साल बाद, नागा नेशनल काउन्सिल ने पूर्वोत्तर भारत में स्वतन्त्रता दिवस के बहिष्कार का आह्वान किया। इस क्षेत्र में अलगाववादी विरोध प्रदर्शन 1980 के दशक में तेज हो गया और उल्फा व बोडोलैण्ड के नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रन्ट की ओर से आतंकवादी हमलों व बहिष्कारों की खबरें आने लगीं। बीती शताब्दी के आठवें दशक से जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद में वृद्धि के साथ, अलगाववादी प्रदर्शनकारियों ने बन्द करके, काले झण्डे दिखाकर और ध्वज जलाकर वहाँ स्वतन्त्रता दिवस का बहिष्कार किया। इसी के साथ लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन और जैश-ए- मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों द्वारा धमकियाँ जारी की गयीं और स्वतन्त्रता दिवस के आसपास हमले किये गये। उत्सव के बहिष्कार की विद्रोही माओवादी संगठनों द्वारा वकालत की गयी। विशेष रूप से आतंकवादियों की ओर से आतंकवादी हमलों की आशंका में सुरक्षा उपायों को, विशेषकर दिल्ली, मुम्बई व जम्मू-कश्मीर के संकटग्रस्त राज्यों के प्रमुख शहरों में तीब्र कर दिया जाता है। तात्पर्य यह कि यदि समूचे परिदृश्य का आप मूल्याँकन करेंगे तो आपके मन में तीखा प्रश्न उठेगा कि, देश को आजादी मिली कहाँ? दूसरा प्रश्न उठेगा कि, \’नियति से वादा\’ नामक जो भाषण उस दिन रात को दिया, लगभग पचहत्तर वर्ष बाद भी उसका कितना हिस्सा पूरा हुआ है? जिस माओवादी एवं मार्क्सवादी संगठनों को देश की शिक्षा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था (\’नियति से वादा\’ नामक भाषण के अनुपालन में) सौंप दी गयी; उन्होंने देश, देश के नागरिकों एवं देश नौनिहालों नके साथ क्या किया और आज क्या स्थिति है? क्या पहले प्रधानमन्त्री के रूप में नौनिहालों का चाचा बनकर उनके भविष्य के साथ नहीं खेला गया है? आखिर राजनीति करने एवं सत्ता पाने तथा परिवारवाद को बढ़ाने के अलावे उनके शिक्षा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था का कितना ध्यान रखा गया?
अब हम यहाँ स्वास्थ्य से सम्बन्धित एक सामयिक एवं ज्वलन्त अन्य प्रश्न पर आते हैं कि, कोरोना की तीसरी लहर कब आयेगी और कितनी गम्भीर होगी? कोरोना की तीसरी लहर को तमाम आशंकाओं के बिगत सप्ताह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नयी दिल्ली के निदेशक ने काफी आशा भरी जानकारी दिया है। उन्होंने बताया है कि हाल ही में हुए सर्वेक्षण के आँकड़े बताते हैं कि देश की बड़ी आबादी में कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज विकसित हो चुकी है; जिससे इन लोगों को सम्भावित तीसरी लहर से काफी हद तक सुरक्षित माना जा सकता है। इसकी तीसरी लहर को लेकर ज्यादा परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि यह लहर पिछली लहरों की तुलना में कम प्रभावशाली होगी। उनका बयान इण्डियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा किये गये चौथे राष्ट्रीय कोविड सर्वेक्षण पर आधारित है। निदेशक डॉ गुलेरिया ने कहा कि अगर हम कोरोना से बचाव के उपायों को प्रयोग में लाने में कोई लापरवाही नहीं बरतते हैं तो तीसरी लहर को अधिक प्रभावी होने से रोका जा सकता है। प्रमुख सवाल यह है कि कब तक आ सकती है तीसरी लहर? ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि आगामी सितम्बर- अक्टूबर के दौरान देश में कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है; लेकिन यह दूसरी लहर की तरह गम्भीर नहीं होगी। देश के विभिन्न भागों में दूसरी लहर के दौरान लगे लॉकडाउन को धीरे-धीरे खत्म कर दिया है, लोग घरों से बाहर निकलने लगे हैं। इस समय अगर हम कोविड से बचाव के नियमों को लेकर सतर्क रहते हैं तो तीसरी लहर के प्रभावी होने से रोका जा सकता है। तीसरी लहर की गम्भीरता को लेकर एम्स के निदेशक ने कहा कि हम यह अनुमान नहीं लगा सकते कि वायरस कैसे व्यवहार करेगा? लेकिन यह कहा जा सकता है कि आने वाले महीनों में वायरस में कोई और म्यूटेशन देखने को नहीं मिलेगा। देश में लोगों का तेजी से वैक्सीनेशन किया ही जा रहा है और सीरो सर्वे के अनुसार ज्यादातर लोगों में कोविड-19 के खिलाफ प्रतिरक्षा विकसित हो चुकी है, यह सुखद संकेत है। कोविड से बचाव में टीकाकरण के बाद सावधानी बरतने से ही इस महामारी पर विजय मिल सकती है। कोरोना से लोगों को सुरक्षा देने के लिये देश में टीकाकरण की रफ्तार तेज कर दी गयी है। अगर अगले कुछ महीनों, जब तक कि आबादी के एक बड़े हिस्से का टीकाकरण नहीं हो जाता, हमें भीड़-भाड़ तथा गैर-जरूरी यात्रा से बचना चाहिये। कोविड के अनुसार अपना जीवन व्यवहार बनाये रखना चाहिये। ऐसा करने से कोरोना की तीसरी लहर में देरी की जा सकती है और साथ ही इसको आक्रामक रूप लेने से भी रोका जा सकता है।
जमीनी अध्ययनों से पता चलता है कि टीके की दोनों खुराक ले चुके लोगों को कोरोना के गम्भीर संक्रमण और इससे होने वाली मौत के खतरे से सुरक्षित माना जा सकता है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के चौथे सर्वे के अनुसार अबतक देश की दो-तिहाई आबादी में वायरस के खिलाफ रक्षात्मक एन्टीबॉडीज विकसित हो चुकी है। यद्यपि कि अभी भी एक तिहाई आबादी अर्थात लगभग 40 करोड़ लोगों में एन्टीबॉडीज नहीं पायी गयी है। सच्चाई चाहे जो भी हो लेकिन कोरोना के तीसरी लहर को लेकर सतर्क रहने की आवश्यकता है। वह भी तब, जब विश्व के कई देशों में तीसरी लहर ने दस्तक दे दिया है। सरकार की ओर से भी तीसरी लहर को लेकर चेतावनी दे दी गयी है। विशेषज्ञों की एक टीम ने कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के उपाय बताये हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, टीकाकरण कार्यक्रम का विस्तार, मास्क का उपयोग और प्रभावी शारीरिक दूरी का पालन कोविड महामारी की तीसरी लहर का मुकाबला करने के आधारभूत उपाय हो सकते हैं। विभिन्न प्रकार और गुणों के मास्क के उपयोग अत्यावश्यक है, जिनमें कोविड-19 के डेल्टा प्लस वैरियेन्ट के तेजी से प्रसार के प्रभावी नियन्त्रण के लिये उच्च निस्पन्दन क्षमता होती है। कोविड के किसी भी वैरिएंट को रोकने के लिये फेस मास्क वास्तव में सबसे अधिक और अच्छा सुरक्षात्मक उपाय है। इस खतरे से लड़ने के लिए म्यूकरमाइकोसिस जैसी पोस्ट-कोविड स्वास्थ्य जटिलताओं की शीघ्र पहचान की भी सिफारिश की जाती है। इसके अलावा टीकाकरण कार्यक्रम में अनिवार्य एवं तीब्र विस्तार भी परमावश्यक है। भारत के लोगों को वायरस से प्रभावित देशों की यात्रा करने से बचना चाहिये। उचित स्वच्छता का अभ्यास करना चाहिये और ऐसे भोजन का सेवन करना चाहिये, जो घर का बना हो। प्रधानमन्त्री जी ने भी कोरोना की तीसरी लहर को लेकर अनेक बार आगाह किया है। अगले 100 से 150 दिन भारत के लिये खास हैं। आगे उन्होंने कहा है कि हिल स्टेशन में, मार्केट में, बिना मास्क पहने, बिना प्रोटोकॉल का अमल किये; भारी भीड़ का उमड़ना, चिन्ता का विषय है। कोरोना ऐसी चीज है, वह अपने आप नहीं आती है। कोई जाकर ले आये, तो आती है। इसलिये हम यदि सावधानी से रहेंगे, तो तीसरी लहर को रोक पायेंगे। कई देशों में बड़ी तेजी के साथ कोरोना के मामले बढ़े हैं। विश्व में बिगत के बिगत सप्ताह 33.76 लाख कोरोना के केस सामने आये; जबकि बिगत सप्ताह 29.22 लाख मामले सामने आये थे। अब सवाल खड़ा होता है कि, शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर \’नियति से वादा\’ नामक व्याख्यान में जो बातें कही गयीं; उसका 1964 तक और उसके बाद के वर्षों में अब तक कितना और कैसी व्यवस्था की गयी है? इसको बच्चों के भविष्य के साथ कितना देखा समझा और व्यवहार में लाया गया?
कोविड-19 आपातकाल के दौरान बच्चे और परिवार देश की सर्वोच्च प्राथमिकता बने हुये हैं। इस समय के दौरान सभी रेफरल स्वीकार किये जाते हैं और उन पर कार्रवाई की जाती है। सरकार के साथ- साथ स्वयंसेवी संस्थाओं तथा स्थानीय स्कूल आदि, विशिष्ट जानकारी के साथ अगले चरणों के लिये आगामी दिनों के भीतर परिवार से सम्पर्क कर अग्रिम कार्य करने की योजना में लगना चाहिये; क्योंकि देश का बुनियादी ढाँचा \’नियति से वादा\’ करता हुआ एकदम नहीं दिखा है और न दिख रहा है। इस अभूतपूर्व समय के दौरान आपको धैर्य रखना होगा; क्योंकि तीसरी लहर सामान्यतया नौनिहालों से जुड़ी हुई है। यहाँ हम बच्चों के भविष्य की विकास की बात पर यदि विचार करें तो ज्ञात होता है कि- विकास के चार मुख्य क्षेत्रों में बच्चे अपने पहले पाँच वर्षों में कुछ क्षेत्रों में तेजी से बढ़ते और विकसित होते हैं। यह क्षेत्र भौतिक, भाषा और संचार, संज्ञानात्मक और सामाजिक/भावनात्मक होते हैं। संज्ञानात्मक विकास का अर्थ है कि बच्चे कैसे सोचते हैं? चीजों का कैसे पता लगाते हैं? यह ज्ञान, कौशल, समस्या समाधान और स्वभाव का विकास है, जो बच्चों को उनके आसपास की दुनिया के बारे में सोचने और समझने में मदद करता है। मस्तिष्क का विकास संज्ञानात्मक विकास का हिस्सा है और इसके लिये शिक्षा की स्वास्थ्य का परिवेश एवं वातावरण अनिवार्य रूप से ठीक होना चाहिये। माता- पिता के रूप में, अपने बच्चे के जन्म के साथ ही उसके संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देना और तदनुसार परिवेश बनाये रखना महत्वपूर्ण है; क्योंकि ऐसा करने से आपके बच्चे को स्कूल में और बाद के जीवन में सफलता की नींव पड़ती है। अध्ययनों से पता चलता है कि जो बच्चे छह महीने की उम्र में ध्वनियों में अन्तर करना जान जाते हैं, वे चार और पाँच वर्ष की उम्र में पढ़ने और सीखने के कौशल हासिल करने में बेहतर होते हैं। अपने बच्चे के संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देने के लिये महत्वपूर्ण है कि आप दैनिक आधार पर गुणवत्तापूर्ण बातचीत में सक्रिय रूप से शामिल हों। उदाहरणों में शामिल अपने बच्चे के साथ बात करना और आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं का नामकरण करना। अपने बच्चे को खिलौनों का पता लगाने और आगे बढ़ने दें। अपने बच्चे को गाना और पढ़ना सीखने दें; बच्चे को किताबों और पहेलियों से परिचित करायें तथा विशिष्ट शिक्षण गतिविधियों में अपने बच्चे की रुचियों का विस्तार करें। जैसे, आपका बच्चा डायनासोर में शुरुआती रुचि दिखा सकता है; इसलिये आप उसे प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय की यात्रा पर ले जा सकते हैं ताकि उस समय के बारे में अधिक जान सके, जब ये जीव पृथ्वी पर घूमते थे। लेकिन आप यह तभी कर सकते हैं; जब आपका परिवेश और वातावरण अच्छा एवं व्यवस्थित हो। इसके लिये सरकार एवं जनता अर्थात नागरिक अर्थात बच्चों के अभिभावक उत्तरदायी हैं। अभिभावक इसलिये सर्वाधिक उत्तरदायी हैं; क्योंकि सरकार भी उन्हीं को बनानी होती है। इसका ध्यान रखते हुये अपने बच्चे के \’क्यों\’ \’क्या\’ \’कैसे\’ आदि प्रश्नों का ठीक एवं नौनिहालों के समझने योग्य उत्तर देना आपका उत्तरदायित्व है। बच्चे के संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देने के लिये उसे विकल्प प्रदान करना और उसे सोच- समझकर निर्णय लेने के लिये प्रेरित करना। आपको अपने बच्चे को समस्याओं को सुलझाने के विभिन्न तरीकों का पता लगाने की भी अनुमति देनी चाहिये और वह दबाव में न आये इसके लिये उसको आरम्भिक समय में जरूरी सहयोग भी करना चाहिये। ऐसे में आप बच्चे की कुछ कोमल मार्गदर्शन और प्रोत्साहन प्रदान करिये तथा बच्चे को एक नयी पहेली की तरह चीजों को समझने के लिये समय दीजिये। इसके लिए आपकी ओर से धैर्य की आवश्यकता पड़ेगी; लेकिन यह उसे सीखने में मदद करेगा। आगामी पन्द्रह अगस्त को देश का स्वाधीनता दिवस है; हम उसे धूमधाम से मनायेंगे ही। साथ ही कोविड के तीसरे लहर की भी तीब्र सम्भावना है, जिसके द्वारा बच्चों को अधिक प्रभावित होने की आशंका है। उपरोक्त बातों के प्रकाश में हमें अपनी आज की स्थिति से कुशलता पूर्वक निपटने का मार्ग तय करना है और इतिहास का भी पुनरावलोकन भी करना है; क्योंकि उससे पुनः गलती करने की सम्भावना कम हो जाती है। भारत में \’विद्या भारती\’ नाम का एक देशव्यापी शिक्षा संगठन है; जो हजारों विद्यालयों एवं प्रकल्पों के माध्यम से सही अर्थों में देश के नौनिहालों के भविष्य को लेकर समेकित विचार कर कार्य करती है। देखने में आया है और आ रहा है कि, \’विद्या- भारती\’ उपरोक्त दृष्टि से समाधान की दिशा में बच्चों को ध्यान में रखते हुये व्यापक कार्य कर रही है।
(विद्या भारती की पत्रिका \’सृष्टि सम्वाद भारती\’ लखनऊ के अगस्त 2021 के अंक में प्रकाशित।)
डॉ कौस्तुभ नारायण मिश्र
