लगभग 22 – 23 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 2015-16 और 2020-21 के बीच लगभग 8.43 प्रतिशत और शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद लगभग 8.42 प्रतिशत बड़ा है। यह प्रदेश देश में प्रमुख दूध उत्पादक राज्य के रूप में मान्यता प्राप्त है। राज्य में दूध उत्पादन 2020-21 में 30.5 मिलियन टन रहा, जो देश के कुल दूध उत्पादन का 16.50 प्रतिशत है। अप्रैल 2021 तक, उत्तर प्रदेश में कुल 28,001.95 मेगावाट में से- 6,242.20 मेगावाट राज्य उपयोगिताओं हेतु, 13,562.74 मेगावाट निजी उपयोगिताओं हेतु और 8,197.01 मेगावाट केन्द्रीय उपयोगिताओं हेतु स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता थी। राज्य की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता में थर्मल पावर ने 20,303.33 मेगावाट का योगदान दिया, इसके बाद 3,424.03 मेगावाट (पन बिजली), 289.48 मेगावाट (परमाणु ऊर्जा) और 3,985.11 मेगावाट (नव्यकरणीय ऊर्जा) का योगदान रहा। राज्य के संसाधन, नीतिगत प्रोत्साहन, अवस्थापनात्मक सुविधाओं जलवायु तथा विभिन्न क्षेत्रों जैसे – सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी), कृषि आधारित खाद्य प्रसंस्करण, हल्के इंजीनियरिंग सामान, खेल के सामान, कपड़ा, चमड़ा आधारित सामान, पर्यटन और जैव प्रौद्योगिकी में निवेश के लिये उपयुक्त अवसर उपलब्ध हुए हैं। राज्य में अच्छी तरह से विकसित सामाजिक, भौतिक और औद्योगिक बुनियादी ढांचा खड़ा हुआ है। कुल 48 राष्ट्रीय राजमार्गों, आठ हवाई अड्डों और सभी प्रमुख शहरों के लिये रेल लिंक के माध्यम से गमनागमन की अच्छी व्यवस्था बनी है। इतना ही नहीं, राज्य राजमार्गों का भी यहां व्यापक गुणात्मक एवं मात्रात्मक विस्तार हुआ है। पेयजल, आवासीय भवन निर्माण, स्वक्षता अभियान, उज्जवला योजना जैसी अनेक केन्द्रीय एवं राज्य सरकार की योजनाओं का व्यापक नियोजन द्वारा उन्हें लागू किया जा रहा है। राज्य ने हाल के दिनों में बुनियादी ढांचे के विकास की उच्च दर देखा है। बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में औद्योगिक समूहों/ केंद्रों और सार्वजनिक- निजी-भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उद्योग और आन्तरिक व्यापार संवर्धन विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य ने अप्रैल 2019 और मार्च 2021 के बीच 664.66 मिलियन अमेरिकी डालर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित किया है।
उत्तर प्रदेश को एक निवेश गंतव्य के रूप में बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा की गयी कुछ प्रमुख कार्ययोजनाओं में- जून 2021 में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने सतत शहरी विकास के क्षेत्र में जापान के साथ सहयोग के एक ज्ञापन को मंजूरी दिया, जिससे लगभग एक वर्ष बाद रोजगार के व्यापक अवसर खुलेंगे। अगस्त 2020 में एशियाई विकास बैंक ने उत्तर प्रदेश में दिल्ली और मेरठ के बीच हाई-स्पीड रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम कॉरिडोर के लिये एक बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण को मंजूरी दिया। सौर ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के लिये निजी निवेश को आकर्षित करने के उद्देश्य से सौर ऊर्जा नीति 2017 लागू की गयी है। इस वर्ष के अन्त तक 10,700 मेगावाट सौर ऊर्जा पैदा करने का लक्ष्य है। राज्य ने 2016-17 से 2020-21 तक 14.26 लाख घरों के निर्माण के साथ प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घरों का सबसे तेज निर्माण दर्ज किया। निवेश का लक्ष्य पूरी तरह आईटी, डेयरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, पर्यटन, विनिर्माण, अक्षय ऊर्जा, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर केन्द्रित रहे हैं। राज्य मंत्रिमंडल ने 250 हजार नौकरियां पैदा करने और रुपये के निवेश को आकर्षित करने के इरादे से यूपी रक्षा और एयरोस्पेस इकाइयों और रोजगार प्रोत्साहन नीति 2018 को मंजूरी दिया था और अब भी इस पर कार्य चल रहा है। उत्तर प्रदेश नागरिक उड्डयन प्रोत्साहन नीति 2017 उत्तर प्रदेश में निवेश और व्यापार को बढ़ावा देने और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लायी गयी थी; क्योंकि हवाई सम्पर्क के साथ-साथ सड़क सम्पर्क में वृद्धि से रोजगार के अधिक अवसर पैदा होंगे। उत्तर प्रदेश ने राज्य को वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स हब के रूप में स्थान देने के लिये नयी इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण नीति 2020 की भी घोषणा किया और उस पर अब भी कार्य चल रहा है। उत्तर प्रदेश स्टार्टअप नीति, 2020 भी पारित किया है। राज्य के प्रत्येक जिले में न्यूनतम एक इनक्यूबेटर स्थापित करना / समर्थन करना और कम से कम 10,000 स्टार्टअप के लिए एक पारिस्थितिकी तन्त्र बनाने का लक्ष्य पूरा हो सके है।
उपरोक्त विवेचन से कोई भी स्वतः समझ सकता है कि, समृद्धि या संरचनात्मक विकास केवल शरीर को सुख प्रदान कर सकता है; लेकिन संतुष्टि पाने के लिए वस्तुगत विकास की कोई आवश्यकता नहीं होती। वस्तुगत विकास ही वस्तुगत अधिकार की मांग करता है और वही संघर्ष का कारण बनता है। किसी भी व्यक्ति, किसी भी समाज और यहां तक कि किसी भी देश का विकास सहयोग एवं संघर्ष दोनों से होता है। वस्तुगत विकास, संघर्ष की मांग करता है; क्योंकि वहां अधिकार भाव जागृत होता है। संतुष्टि, त्यागमय भाव है और इसी कारण यह संघर्ष की अपेक्षा सहयोग को महत्वपूर्ण मानता है। उदाहरण के लिए, किसी भी मत पंथ में वह क्या है, जो व्यक्ति को संतुष्ट करता है; यद्यपि कि उसे लौकिक रूप में कुछ प्राप्त नहीं होता है। अवस्थापनात्मक सुविधाओं के विकास के साथ साथ यदि; कोई सरकार स्वक्षता, निर्मलता, प्रेम, भाईचारा, दया आदि का भाव पैदा करने वाले योजना एवं कार्यक्रम यदि कोई सरकार ले आती है; इसका आशय है कि वह समग्र विकास की पोषक है। यदि कोई सरकार समान नागरिक संहिता, समान नागरिक कानून, भेदभाव रहित समाज निर्माण, प्रकृति से सहकार स्थापित करने वाले कार्यक्रम चला रही है तो इसका आशय है कि वह समग्र विकास की दिशा में है। उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार, केन्द्र सरकार की ही तरह समग्र विकास अर्थात नागरिक समाज के संतुष्टि एवं समृद्धि को दृष्टिगत रखते हुए जो कार्य कर रही है और उसकी जो भी भविष्य उन्नमुखी योजनाएं हैं, वे सराहनीय हैं।
उपरोक्त आशय से निम्न बातों को समझना जरूरी है। समन्वित अथवा समेकित अथवा समग्र विकास से आशय \’समृद्धि\’ एवं \’संतुष्टि\’ के समन्वय से है। इन्हें स्थूल और सूक्ष्म विकास के समन्वय से भी जानते हैं। यदि ये दोनों एक साथ बिना टकराव के समान्तर गति से चल रहे हैं तो समझिये आप विकासमान हैं; अन्यथा आप गलतफहमी में हैं। उक्त दोनों को एक साथ \’सुख – शान्ति\’ कहते हैं। उदाहरण के लिये एक ऐसे व्यक्ति की कल्पना कीजिये, जिसके पास अकूत धन, महंगी गाड़ी, बड़े बंगले, वातानुकूलन के सभी सामान, नौकर- चाकर, खाने- पीने के सभी उच्चतम चीजें हों; लेकिन चिकित्सक ने उन्हें कड़े विस्तर या चौकी या दीवान पर केवल एक पतली दरी बिना तकिया (पिलो) के छत पर या नीब के पेड़ के नीचे या खुले में सोने को कह दिया हो; कह दिया हो कि आपको दो सादी चपाती करेले या लौकी की सब्जी से केवल दो बार खानी है और गाय या बकरी का एक कप कच्चा दूध पीना है, आदि! तो फिर उनकी समृद्धि का औचित्य? ऐसा इसलिये होता है; क्योंकि कोई संतुष्टि एवं समृद्धि को एक साथ लेकर नहीं चलता है। एक दूसरे उदाहरण की कल्पना कीजिये, जब एक मजदूर दिन भर काम करके, शाम को भर पेट खाकर, फुटपाथ पर गहरी नींद सोता है, न उसे मच्छर काटने का भय, न उसे गर्मी लगने या पसीने होने से परेशानी! आप कल्पना कीजिये कि किसी पहाड़ या जंगल या किसी नदी की तलहटी में कोई व्यक्ति एक कम्बल के सहारे, कुछ कंदमूल फलफूल खाता हो और शाम को पुनः कुछ खाने पीने की कोई निश्चित व्यवस्था न हो; फिर भी आनन्द एवं प्रसन्नता से जीवन बिता रहा हो। आप क्या कहेंगे? इन तीनों परिस्थियों को? या ऐसी ही अन्य परिस्थितियों को? जो केवल सन्तुष्ट होकर रह लेना चाहता है, उसे समृद्धि नहीं मिल सकती और जो केवल समृद्धि की इच्छा रखता है, उसे संतुष्टि नहीं मिल सकती। यहां यह बात ध्यान रखिये कि लोक या संसार या लौकिक जगत या मानव या जीव जगत, इनमें से केवल किसी एक के सहारे नहीं चल सकता है; यदि चलेगा तो उसकी आयु लम्बी नहीं होगी। दुनिया में भारत के बाहर केवल समृद्धि को विकास का आधार माना गया है और इसीलिये वहां केवल इस बात पर ध्यान रहता है कि समृद्धि कितनी, किसका, कैसा? संसाधन कितना, किसका, कैसा? सम्पत्ति कितना, किसका, कैसा? आदि। भारत में ऐसा नहीं है और न ऐसा था; आज भारत में जो भी विसंगति है, वह इसी कारण है कि यहां भी कुछ लोगों ने वही करना चाहा, जो भारत के बाहर होता रहा है।
डा कौस्तुभ नारायण मिश्र
अनंतवक्ता, नई दिल्ली के जुलाई 2022 अंक में प्रकाश्य।
