अटल बिहारी वाजपेयी जी, तीन बार में लगभग 75 महीने भारत देश के प्रधानमन्त्री थे। वे कवि, पत्रकार, लेखक और कुशल वक्ता थे। भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में एक थे और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे। लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का उन्होंने सम्पादन भी किया। वह चार दशकों से भारतीय संसद के सदस्य थे। लोकसभा अर्थात निचले सदन के दस बार और दो बार राज्य सभा अर्थात ऊपरी सदन के लिये चुने गये थे। अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर आरम्भ करने वाले वाजपेयी जी राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे, जिन्होंने गैर कांग्रेसी प्रधानमन्त्री पद, 5 वर्ष बिना किसी समस्या के पूर्ण किये। उन्होंने 24 दलों के गठबन्धन से सरकार बनाया था, जिसमें 81 मन्त्री थे। उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे; वहीं शिन्दे की छावनी में 25 दिसम्बर 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में उनकी सहधर्मिणी कृष्णा वाजपेयी जी की कोख से अटल जी का जन्म हुआ था। महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित अमर कृति ‘विजय पताका’ पढ़कर अटल जी के जीवन की दिशा बदल गयी थी। अटल जी की स्नातक स्तर की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) से हुई। छात्र जीवन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे।
कानपुर के डीएवी कालेज से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किये। उसके बाद उन्होंने अपने पिता जी के साथ-साथ कानपुर में ही एलएलबी की पढ़ाई प्रारम्भ किया; लेकिन उसे बीच में ही विराम देकर पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुट गये। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का उन्होंने पाठ पढ़ा। सर्वतोमुखी विकास के लिये किये गये योगदान तथा असाधारण कार्यों के लिये 2015 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। सन 1952 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, परन्तु सफलता नहीं मिली; लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सन 1957 में बलरामपुर, उत्तर प्रदेश से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा पहुँचे। सन 1957 से 1977 तक जनता पार्टी की स्थापना तक वे बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में सन 1977 से 1979 तक विदेशमन्त्री रहे और विदेशों में भारत की छवि बनायी। सन 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में सहयोग किया और 6 अप्रैल 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी के प्रथम अध्यक्ष पद का दायित्व भी वाजपेयी को सौंपा गया।
वर्ष 2004 में कार्यकाल पूरा होने से पहले गर्मी में सम्पन्न कराये गये लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन ने वाजपेयी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और भारत उदय का नारा दिया। इस चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। ऐसी स्थिति में वामपंथी दलों के समर्थन से कांग्रेस ने केन्द्रीय सरकार पर कायम होने में सफलता प्राप्त किया। इस तरह एक प्रकार से अटल जी की राजनीतिक पारी पूर्ण हुई और वे अन्तिम बार सांसद थे। अटल सरकार ने 11 और 13 मई 1998 को पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण करके भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न देश घोषित कर भारत को विश्व मानचित्र पर एक सुदृढ वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया। यह सब इतनी गोपनीयता से किया गया कि अति विकसित जासूसी उपग्रहों व तकनीक से सम्पन्न पश्चिमी देशों को भी इसकी भनक न लगी। कई देशों द्वारा भारत पर अनेक प्रतिबन्ध लगाये गये; लेकिन वाजपेयी सरकार ने सबका दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए देश को आर्थिक विकास की ऊँचाई तक पहुंचाया। दिनाँक 19 फरवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा अटल जी द्वारा शुरू की गयी। इस सेवा का उदघाटन करते हुए प्रथम यात्री के रूप में वाजपेयी जी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज शरीफ से मुलाकात की और आपसी सम्बन्धों में एक नयी शुरुआत का अनूठा प्रयास किया। लेकिन वहां के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व उग्रवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। अटल सरकार ने पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन न करने की अन्तर्राष्ट्रीय सलाह का सम्मान करते हुए धैर्यपूर्वक; किन्तु ठोस कार्यवाही करके भारतीय क्षेत्र को मुक्त कराया। उन्होंने भारत भर के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिये स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की शुरुआत कराया। इसके अन्तर्गत दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्गों से आपस में जोड़ा गया। एक सौ वर्ष से भी अधिक पुराने कावेरी जल विवाद को इसी समय अटल जी की देखरेख में सुलझाया गया। संरचनात्मक ढाँचे के लिये कार्यदल, सॉफ्टवेयर विकास के लिये सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण में गति लाने के लिये केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का उन्होंने गठन कराया। नयी टेलीकाम नीति, कोंकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढाँचे को मजबूत करने वाले कदम उठाये गये। राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति का भी गठन हुआ। उड़ीसा के सर्वाधिक निर्धन क्षेत्र के लिये सात सूत्रीय निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया गया। आवास निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिये अर्बन सीलिंग एक्ट समाप्त किया। वह हिन्दी के सिद्धहस्त कवि भी थे और उनकी रचनायें व्यापक रूप में प्रकाशित भी हुईं। ‘मेरी इक्यावन कविताएँ’ अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। उनकी सर्व प्रथम कविता ‘ताजमहल’ थी। इस कविता में उनका ध्यान ताजमहल के कारीगरों के शोषण पर गया है।
राजनीति के साथ-साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी वैयक्तिक संवेदनशीलता आद्योपान्त प्रकट होती रही है। उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति उनके काव्य में अनवरत अभिव्यक्ति पाये हैं। वे पूरे जीवन अविवाहित रहते हुए अपने लम्बे समय से मित्र राजकुमारी कौल और बी एन कौल की बेटी नमिता भट्टाचार्य को दत्तक पुत्री के रूप में स्वीकार किया। अटल जी के साथ नमिता और उनके पति रंजन भट्टाचार्य रहते थे। उनके देहावसान पर उनकी दत्तक पुत्री नमिता कौल भट्टाचार्या ने उन्हें मुखाग्नि दीं। उनकी अन्तिम यात्रा बहुत भव्य तरीके से निकाली गयी; जिसमें प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी समेत सैंकड़ों नेतागण पैदल चलते हुए गंतव्य तक पहुंचे थे। वाजपेयी जी के निधन पर भारत भर में सात दिन के राजकीय शोक की घोषणा की गयी। अमेरिका, चीन, बांग्लादेश, ब्रिटेन, नेपाल और जापान समेत विश्व के देशों द्वारा उनके निधन पर दुःख जताया गया। वह पहले प्रधानमन्त्री थे, जिन्होंने गठबन्धन सरकार को न केवल स्थायित्व दिया; बल्कि सफलता पूर्वक संचालित भी किया। पहले प्रधानमन्त्री थे, जो सामान्य परिवार और जमीन से जुड़े हुए थे और निर्विवाद रूप से उनके ऊपर कभी जाति के नेता बने और न इस प्रकार का कभी आरोप लगा। अटल जी पहले विदेशमन्त्री थे; जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था। चाहे प्रधानमन्त्री के पद पर रहे हों या नेता प्रतिपक्ष; बेशक देश की बात हो या क्रान्तिकारियों की या फिर उनकी अपनी ही कविताओं की, नपी-तुली और बेवाक टिप्पणी से वे कभी नहीं चूके। उन्होंने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा सरस्वती शिक्षा मन्दिर, गोरखी, बाड़ा, विद्यालय से प्राप्त किया; इसके बाद उन्होंने स्नातक की शिक्षा लक्ष्मीबाई कॉलेज से पूरी किया।
आजादी की लड़ाई में भी वे अनेक नेताओं के साथ मिलकर लड़े। आज भी अटल जी द्वारा दिये गये भाषण, लिखी गयी किताबें, कविताओं और प्रधानमन्त्री के रूप में किये गये कार्यों द्वारा उन्हें सम्मान के साथ याद किया जाता है। अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपनी राजनीतिक जीवन का आरम्भ 1942 से शुरू किया। जैसा कि आप सभी को पता होगा, उस समय भारत छोड़ो आन्दोलन जोर शोर से चल रहा था और इसी बीच उनके भाई को इस आन्दोलन में गिरफ्तार कर लिया गया। इनके भाई को 23 दिनों के लिये जेल कारावास में रखकर उन्हें रिहा कर दिया गया था। उसी समय अटल जी की मुलाकात श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी से हुई थी। भारतीय जनसंघ पार्टी का गठन सन 1951 में हुआ था; जिसमें गुरु गोलवलकर जी और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की प्रेरणा से अटल जी भी शामिल हुए। सन 1957 में जनसंघ पार्टी द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी जी को अपने उम्मीदवार के तौर पर उत्तर प्रदेश जिले के बलरामपुर लोकसभा सीट से चुनाव के लिये टिकट दिया गया और अटल जी ने लोकसभा चुनाव में अपनी पहली जीत दर्ज किया। इसके बाद उनकी उपलब्धि को देखते हुए उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद सन् 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपनी एक पार्टी भारतीय जनता पार्टी’ का गठन किया और 06 अप्रैल 1980 को अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला। लोकसभा चुनाव सन 1996 में भारतीय जनता पार्टी का देश भर में पहला विजय चुनाव रहा। इस चुनाव से भाजपा ने देश में पहली बार अपनी सरकार स्थापित किया और मात्र 13 दिनों के लिये 06 मई से 21 जून 1996 तक देश के दसवें प्रधानमन्त्री के रूप में अटल जी ने शपथ लिया। सन 1998 में सरकार गिरने के 2 साल बाद पार्टी पुनः सत्ता में आई और 19 मार्च 1998 को अटल जी ने दूसरी बार और फिर 10 अक्टूबर 1999 को तीसरी बार प्रधानमन्त्री के रूप में शपथ ग्रहण किया। वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध में भारतीय सेना को खुला समर्थन अधिकार और छूट दिया। जिससे कि हमारी सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को भगाकर उन्हें धूल चटाया।
अटल जी को हमेशा एक साफ छवि के नेता के तौर पर देखा जाता रहा है और रहेगा भी। किन्तु इसके साथ कुछ विवाद भी जुड़े हैं। जिस वक्त बाबरी मजिस्द को गिराया गया था, उस वक्त विपक्ष के कई नेताओं द्वारा अटल जी की भूमिका पर सवाल खड़े किये गये थे; क्योंकि इस मजिस्द के खिलाफ उस वक्त बीजेपी के कई नेताओं द्वारा रैली निकाली गई थी। दूसरा कंधार जहाज अपहरण मामला आता है; विमान में सवार लगभग 190 लोगों की जान बचाने के लिये तीन आतंकी- मसूद अजहर, उमर शेख और अहमद जरगर को रिहा करना पड़ा था। तीसरा मामला उनपर कारगिल युद्ध को लेकर भी सवाल उठाये जाते हैं। लेकिन ये विवाद और आरोप केवल राजनीतिक रहे हैं; अटल जी के राष्ट्रवादी सफल देशहित में किये गये लोककल्याणकारी कार्यो के कारण ही जाना जाता है और जाना जायेगा। पूर्व प्रधानमन्त्री ‘भारत रत्न’ अटल बिहारी वाजपेयी देश के एकमात्र ऐसे राजनेता थे, जो चार राज्यों के छह लोकसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर चुके थे। उत्तर प्रदेश के लखनऊ और बलरामपुर, गुजरात के गांधीनगर, मध्यप्रदेश के ग्वालियर और विदिशा तथा दिल्ली की नई दिल्ली संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाले वाजपेयी इकलौते नेता थे। सन 1951 में आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी का गठन हुआ तो श्यामाप्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय जैसे नेताओं के साथ अटल बिहारी वाजपेयी की अहम भूमिका रही। वर्ष 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में वे चुनाव हार गये, मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर वे लोकसभा में पहुंचे। वाजपेयी तीसरे लोकसभा चुनाव 1962 में लखनऊ सीट से उतरे, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिल सकी। इसके बाद वे राज्यसभा सदस्य चुने गये। बाद में 1967 में फिर लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन पुनः जीत नहीं सके। इसके बाद 1967 में ही उपचुनाव हुआ, जहां से वे जीतकर सांसद बने और 1968 में वाजपेयी जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उस समय पार्टी के साथ बलराज मधोक, नाना जी देशमुख तथा लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता थे। वर्ष 1971 में पांचवें लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी मध्यप्रदेश के ग्वालियर संसदीय सीट से चुनाव में उतरे और जीतकर संसद पहुंचे। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में 1977 और फिर 1980 के मध्यावधि चुनाव में उन्होंने नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया; लेकिन वर्ष 1984 में अटलजी ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर से लोकसभा चुनाव का पर्चा दाखिल कर दिया और उनके खिलाफ अचानक कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को खड़ा कर दिया, जबकि माधवराव गुना संसदीय क्षेत्र से चुनकर आते थे। सिंधिया से वाजपेयी पौने दो लाख वोटों से हार गये। वाजपेयी जी 1991 के आम चुनाव में लखनऊ और मध्य प्रदेश की विदिशा सीट से चुनाव लड़े और दोनों जगह से जीते। बाद में उन्होंने विदिशा सीट छोड़ दी। वर्ष 1996 में हवाला काण्ड में अपना नाम आने के कारण लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर से चुनाव नहीं लड़े। इस स्थिति में अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ सीट के साथ-साथ गांधीनगर से भी चुनाव लड़ा और दोनों ही जगहों से जीत हासिल की। इसके बाद लखनऊ को उन्होंने स्थायी कर्मभूमि बना लिया। वे कांग्रेस सरकार के सबसे बड़े आलोचकों में शुमार किये जाने लगे। सन 1994 में कर्नाटक, 1995 में गुजरात और महाराष्ट्र में पार्टी जब चुनाव जीत गई उसके बाद पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने वाजपेयी को प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। अटल जी, भारत केन्द्रित विचारधारा के पहले बेबाक ईमानदार नेता और प्रधानमन्त्री थे, जिनकी पार्टी के अन्दर और दूसरी पार्टियों में भी; देश एवं विदेश में व्यापक स्वीकार्यता थी। जमीन अर्थात एक साधारण परिवार से उठकर उत्कृष्ट स्थान पर पहुंचकर उत्कृष्ट पद्धति से उत्कृष्ट कार्य करने वाले भी भारत के पहले नेता थे, जिनके ऊपर कभी जातिवाद का या जातिवादी नेता होने का आरोप नहीं लगा।
यह लेख ‘न्यूज टाइम्स पोस्ट’, लखनऊ के दिसम्बर 2022 के अंक में प्रकाशित है।
डॉ कौस्तुभ नारायण मिश्र
प्रोफेसर और स्तम्भकार
