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भारतीय ज्ञान परम्परा (क्रमशः तीन) : विश्वास परमात्मा तथा कर्म का फलन

कुछ अभारतीय और अभारतीय मानसिकता के लोगों ने अनेक अवसरों पर भारतीय ज्ञान परम्परा और भारतीय दर्शन बोध को निराशावादी कहा है। निराशावादी उस सिद्धान्त को कहते हैं जो सृष्टि

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ग्राम्य-विकास औद्योगीकरण और आत्मनिर्भरता

  लगभग 135 करोड़ की आबादी वाले देश में संसाधन, नीतिगत प्रोत्साहन, अवस्थापनात्मक सुविधाओं जलवायु तथा विभिन्न क्षेत्रों जैसे – सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी), कृषि आधारित खाद्य प्रसंस्करण, हल्के इंजीनियरिंग सामान,

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घर-घर तिरंगा का अमृत महोत्सव

भारत सरकार का घर – घर तिरंगा अभियान एक सुन्दर प्रयोग है। यह राष्ट्रीय ध्वज देश के लिये तो गौरव का प्रतीक है ही, दुनिया के लिये यह हमारी पहचान

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विवेक बुद्धि और विद्या (भारतीय ज्ञान परम्परा, क्रमशः दो)

अनेक बार यह कहा जाता है कि- ‘न मूलं लिख्यते किञ्चित।’ ऐसे लोगों से जब प्रश्न पूछिये कि आखिर मूल कहते किसे हैं? तो उनके पास कोई उत्तर नहीं होता।

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नौवाखाली से कारगिल तक

इस समय बांग्लादेश से ठीक समाचार नहीं मिल रहा है। वहां अल्पसंख्यकों पर हत्या, आगजनी, लूटपाट, मारपीट, बलात्कार की घटनाओं को लेकर देश भर में आन्दोलन हुए और हो रहे

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भारतीय ज्ञान – परम्परा एक

वर्तमान समय में यदि ज्ञान परम्परा की चर्चा की जाय तो स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है कि यह धीरे धीरे तिरोहित होती जा रही है। ठीक वैसे ही जैसे

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