विनाश और विकास के द्वन्द्व में चीन

विकास की केवल लौकिक संकल्पना एवं उसका व्यवहार विनाश की दिशा में ले जाती है; क्योंकि यह प्रकृति का अनुसरण नहीं करती। यह कांक्रीट विछाने और महल बनाने को ही विकास मान लेती है। उन्नति, प्रगति और विकास, तीनों के अर्थ तथा प्रयोग से हमें भलीभांति परिचित होना चाहिये। यद्यपि इसकी बाद में कभी विस्तार से चर्चा करेंगे, यहाँ इसका व्यापक प्रयोजन नहीं है। वास्तव में प्रकृति का ध्यान किये बिना, शरीर के दृश्य तथा अदृश्य, दोनों प्रकार के अवयवों की सुख, शान्ति, संतुष्टि हेतु किया जाने वाला कार्य विकास कहलाता है; इसमें पदार्थ अर्थात स्थूल ही सब कुछ होता है। प्रकृति अर्थात केवल अलौकिक जगत का ध्यान रखते हुए, शरीर के दृश्य तथा अदृश्य, दोनों प्रकार के अवयवों की सुख, शान्ति, संतुष्टि हेतु किये जाने वाले कार्य को उन्नति कहते हैं; इसमें केवल सूक्ष्म अर्थात अपदार्थ का ध्यान रहता है। प्रकृति अर्थात अलौकिक एवं लौकिक जगत दोनों का ध्यान रखते हुए, शरीर के दृश्य तथा अदृश्य, दोनों प्रकार के अवयवों की सुख, शान्ति, संतुष्टि हेतु किये जाने वाले कार्य को प्रगति कहते हैं; इसमें स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों का ध्यान रखा जाता है। अभारतीय विचार में उन्नति एवं प्रगति के लिये कोई स्थान नहीं है और भारतीय विचार तथा व्यवहार में विकास निरर्थक है। भारत में उन्नति, भक्त साधु सन्त महात्मा ऋषि और मुनि परम्परा का विषय है तथा प्रगति गृहस्थ परम्परा का विषय होता है। भारत में इन दोनों के युग्म से समाज जीवन देश तथा राष्ट्र सहज स्फूर्त चलता है। प्रायः उन्नति, प्रगति एवं विकास को आपस में पर्यायवाची मान लिया जाता है। इस अर्थ में, दृश्य का अर्थ इन्द्रियों से और अदृश्य का अर्थ अनुभूतिजनित मनोभावों से है। यह लौकिक और अलौकिक दोनों के युग्म से ही सम्भव है। यह युग्म ही प्रकृति के अनुरूप विकास के क्रम को आगे बढ़ा सकता है। इस अर्थ में प्रकृति रहित विकास का अगला सोपान, विनाश होता है, विकास नहीं; क्योंकि विकास एक सीमित अवधारणा है। सस्टेनेबिलिटी, भारतीय अवधारणा नहीं है; यह अवधारणा, अभारतीयों द्वारा अपने विकास के विनाशोन्नमुख प्रकृति को छिपाने के लिये या विकास के दुष्प्रभावों जैसे प्रदूषण आदि को छिपाने का साधन मात्र है, समाधान नहीं। इस विषय पर फिर कभी विस्तार से चर्चा करेंगे।

आज जो लोग चीन को तेजी से विकसित हुआ जान और मान रहे हैं; उनको यह भी जानना चाहिये कि चीन का भविष्य उज्जवल नहीं है और वह अपने ही बनाये मकड़जाल में फड़फड़ा रहा है। उसके विकास का दम्भ अहंकार अभिमान, उसे क्रमशः कुंठा हताशा और निराशा की ओर ले जा रहा है। चीन यदि टूटेगा तो सोवियत संघ से अधिक विद्रूप स्थिति में जायेगा और उसमें से कोई रुस नहीं खड़ा होगा। इस पर अनेक बार विस्तृत बात मेरे द्वारा किया गया है। दुनिया में एक बार फिर तेजी से कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ रहा है। खासकर चीन में जिस गति से कोरोना का नया वायरस प्रसार कर रहा है, उस तरह का संक्रमण वहां इससे पहले नहीं देखा गया। समाचार माध्यमों की सूचना के अनुसार, भारत में तीन नये मामले ओमिक्रॉन के सब- वैरियेण्ट बीएफ-7 के पाये गये हैं। ये वही हैं, जिसका संक्रमण चीन में अब तक की सबसे तेज गति से बढ़ रहा है। चीन, अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया और फ्रांस में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच भारत के स्वास्थ्यमन्त्री ने उच्च-स्तरीय समीक्षा बैठक किया और कहा कि ‘कोविड अभी शून्य नहीं हुआ है; हमने सभी जिम्मेदार अधिकारियों को सतर्क रहने और सर्विलांस मजबूत करने को कहा है। इसके साथ ही स्वास्थ्य मन्त्रालय की बैठक के बाद हवाई अड्डों पर चीन से आने वाले और अन्य विदेशी यात्रियों की आकस्मिक जाँच आरम्भ कर दी गयी है। चीन के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि ‘देश में आने वाले कुछ महीनों में कोविड से कुल लगभग 80 करोड़ लोग संक्रमित हुए या हो सकते है। एक रिपोर्ट के अनुसार, कुछ महीनों में चीन में मरने वालों की संख्या पचास लाख से दो करोड़ हो सकती है। उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि, चीन में कोरोना की नयी लहर के कारण वहां के अस्पताल भरते जा रहे हैं; लेकिन चीन की ओर से सटीक जानकारी नहीं दी जा रही है, जिससे हालात का सही आंकलन नहीं हो पा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ० टेड्रोस एडनॉम गेब्रियेसस ने कहा है कि, ‘व्यापक मूल्यांकन के लिये हमें यह ठीक से पता होना आवश्यक है कि लोगों में संक्रमण कितना गम्भीर है? अस्पताल में भर्ती और आईसीयू में कितने लोग हैं? इन सब की जानकारी चीन द्वारा दी जानी चाहिये। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकस्मिक प्रमुख, माइकल रायन ने कहा है कि ‘भले ही चीन के अधिकारी कह रहे हैं कि प्रभावित लोगों की संख्या अपेक्षाकृत कम है’; लेकिन चीन में आईसीयू में रोगी भरते जा रहे हैं। इस महीने के आरम्भ में चीन ने अपनी कड़ी शून्य कोविड नीति में ढील दी, जिसके बाद से ही वहाँ कोरोना मामलों की बाढ़ सी आ गयी है। लेकिन महामारी को लेकर वहाँ से जो आंकड़े आ रहे हैं उस पर दुनिया भर के एपिडेमियोलॉजिस्ट और जानकार सन्देह व्यक्त कर रहे हैं। ये आंकड़े इसलिये भी कम हैं; क्योंकि चीन द्वारा कोविड से प्रभावित लोगों की गणना करने का तरीका ही गलत है और वह तरीका मानक के अनुरूप नहीं है।

भारत बार बार यह कहता आ रहा है कि, ‘यह बेहद संक्रामक वायरस है जो केवल कड़े लॉकडाउन और आपसी दूरी के उपायों से ही नहीं जायेगा; वैक्सीन ही इसको दूर करने का सही तरीका है’। चीन ने खुद वैक्सीन बनाया है, जिसका वह अपने देश में उपयोग भी कर रहा है; लेकिन यह वैक्सीन दुनिया के अधिकांश भागों में प्रयोग होने वाली एम-आरएनए वैक्सीन की तुलना में कम प्रभावकारी है। यद्यपि जर्मनी ने बायोएनटेक वैक्सीन चीन को भेजे हैं; लेकिन वहां की जनसंख्या और आगत लोगों की संख्या की तुलना में यह वैक्सीन कुछ भी नहीं हैं। भले ही चीन के सरकारी आंकड़े कह रहे हों कि, वहाँ कोरोना से एक भी मौत नहीं हुई है; लेकिन अमेरिकी समाचार एजेन्सी रॉयटर्स के एक प्रतिवेदन के अनुसार ‘बीजिंग में कोरोना से हुई मौतों के लिये निर्धारित किये गये श्मशान घाट के सामने शवों की गाड़ियों की लम्बी कतार लगी हुई है। श्मशान के प्रवेश द्वार पर सुरक्षाकर्मी तैनात हैं और वे बताते हैं कि, बीजिंग में कुछ लोगों को तो कई दिनों तक श्मशान घाट पर अपने नम्बर आने की प्रतीक्षा करनी पड़ रही है और कुछ लोग मोटी रकम भर कर श्मशान में जल्दी जगह ले रहे हैं’। एक श्मशान कर्मी ने वहाँ के समाज माध्यम प्लेटफार्म पर पोस्ट साझा किया करते हुये लिखा- ‘यदि आप बिना लम्बी कतारों में खड़े हुए आराम से श्मशान में जगह चाहते हैं तो 26000 युआन (लगभग 3700 डॉलर) में जगह पा सकते हैं’। चीन में यद्यपि इस प्रकार की टिप्पणी और विरोध को निर्ममतापूर्वक दबाया जाता है। फिर भी चीन में विरोध प्रदर्शन की ताजा लहर शी जिनपिंग सरकार के लिये चुनौती बनती जा रही है! चीन के युवा कोविड विरोधी प्रदर्शनों को अनेक तरीकों से मजबूत बना रहे हैं। विरोध करने वालों का कहना है कि, ‘जिसको भी मैं जैसे भी जानता हूँ, उसे बुखार है और बिना किसी तैयारी और बैकअप प्लान के आचानक शून्य कोविड नीति हटाने से पूरे चीन में कोरोना के नये मामले में बाढ़ सी आ गई है। इसे लेकर सोशल मीडिया पर तीब्र क्रोध है। जेनजियांग और अनहुई जैसे कई बड़े शहरों में आकस्मिक टेस्ट किट की बेतहाशा कमी है। चीनी सोशल मीडिया वीबो पर लोग लिख रहे हैं कि, ‘बीते दिनों में कोई तैयारी नहीं की गयी और फिर अचानक से पाबन्दियाँ हटाकर लोगों को बाहर खुलकर आने जाने की अनुमति दे दिया गया; हमारे जीवन की कोई कीमत नहीं है, हमारे जीवन को कीटों और जानवरों जैसा हलका बना दिया जा रहा है’। चीन से बाहर रहने वाले चीनी लोग, जो वापस अपने देश आये हैं, वे संक्रमण की गति देखकर हैरान हैं। चीन के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शियाहोंगशु पर एक यूजर ने लिखा- ‘मैं विदेश में रहता हूँ और मुझे कभी कोविड नहीं हुआ; लेकिन यहाँ अपने देश चीन में आने के बाद मुझे कोविड हो गया। मैं जिन्हें भी जानता हूँ, उन सबको बुखार है; यदि आप देश से बाहर रह रहे हैं तो वहीं रहिये, वापस चीन मत आइए’। बीते दो सप्ताह से चीन के इन्टरनेट से जुड़े सभी माध्यमों पर कोरोना से जुड़े पोस्ट भरे पड़े हैं। अनेक वीडियो ऐसे सामने आ रहे हैं, जिसमें घर में संक्रमित परिजनों को बच्चे खाना और पानी दे रहे हैं।

भारत में कोविड पर नेशनल टास्क फोर्स के प्रमुख वीके पॉल ने भी लोगों से फिर से मास्क और कोविड के अन्य प्रोटोकोल पालन करने की अपील किया है और कहा है कि फिर भी लोगों को डरने की जरूरत नहीं है; क्योंकि भारत सुरक्षित जोन में है। जॉन हॉप्किन्स यूनिवर्सिटी के डैशबोर्ड के अनुसार कोरोना वायरस के कारण दुनियाभर में लगभग 67 लाख लोगों की जान गई है। यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि दुनिया के मानचित्र पर करीब 70 देशों की आबादी 66 लाख से कम है। कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच भारत में वैक्सीनेशन प्रोग्राम पर भी चर्चा शुरू हो गई है। सफदरजंग हॉस्पिटल में कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. जुगल किशोर कहते हैं कि भारत सरकार लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लगाने में पूरी तरह सफल रही है। सूचनाओं के अनुसार, चीन की शून्य कोविड नीति, ऐसी नीति थी, जिसको अचानक रद्द कर दिया गया। इसे बिना किसी तैयारी और बैकअप प्लान के अचानक से समाप्त करने के निर्णय से न केवल यहाँ के लोगों के लिये एक भयानक नई लहर का खतरा पैदा हुआ है; बल्कि यह वहाँ के व्यापार को भी झटका देगा और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व पर भी बड़ा सवाल पैदा कर रहा है। चीन में शून्य कोविड नीति के कारण सब कुछ रुकने के कगार पर आ गया था, इसलिये उसने इस नीति को बदला और बदलने का परिणाम दूसरे तरफ चीन स्वयं और पूरी दुनिया देख रही है। सवाल है चीन इस द्वन्द्व से कैसे निपटे? सम्भव है कि यह नया संकट पूरी दुनिया को हिला कर रख दे, जैसा कि वुहान में होने वाले आउटब्रेक ने तीन साल पहले पूरी दुनिया को ठप कर दिया था। चीन में जो होता है वह आवश्यक नहीं है कि वह केवल चीन तक ही सीमित रहे। बीजिंग में ओमिक्रॉन का संक्रमण ऐसा फैला है कि कि कहीं यह श्यामशान शहर में न बदल जाय! डर है कि यह हालत पूरे चीन में हो सकते हैं। चीनी की सरकार जो अपने आँकड़े छिपाने के लिये जानी जाती है, वह अपने प्रतिदिन आने वाले मामलों को ठीक से रिपोर्ट नहीं कर रही और कई सारे ट्रैकिंग ऐप डिएक्टिवेट कर दिये गये हैं! जिससे वहाँ के हालात कैसे हैं, आँकड़े क्या हैं? सच सामने नहीं है; चीन द्वारा स्वयं रचित जैविक युद्ध की परिकल्पना स्वयं चीन को विध्वंश की तरफ ले जाने को उद्धत है। मतलब संकट अनुमान से भी अधिक भयावह है। इतिहास साक्षी है कि चीन में 1910 से 1920 तक अर्थात 110 वर्ष में लगभग छः करोड़ लोग किसी न किसी नरसंहार में मारे गये हैं। चीन की सरकार मानसिकता से कम्यूनिष्ट और भोग विलासिता से पूँजीवादी मानसिकता से कार्य करती है। चीन में माओत्सेतुंग के कारण 1912-13 एवं 1936-37 में लगभग दो करोड़ लोग; झाओझियाँग के कारण 1966-67 एवं 1987-88 में लगभग डेढ़ करोड़ लोग और 2018-2022 में लगभग ढाई करोड़ लोग मारे जा चुके हैं। यह चीन की विस्तारवादी धूर्त नीति के कारण और उस नीति का चीनी जनता द्वारा उस नीति का विरोध का दमन करने के कारण हुई है; क्योंकि चीन की लगभग नब्बे प्रतिशत जनता या तो बौद्ध या ताओ या कन्फ्यूसियस है और ये तीनों चीनी सरकार की मानसिकता के वास्तविक पक्षकार नहीं है। ये तीनों पन्थ दम्भी अहंकारी अभिमानी क्रोधी हिंसक अर्थात अमानवीय चीनी सरकारी मानसिकता के नहीं है। सरकार एवं जनता के इस वैचारिक भेद की जिस दिन पराकाष्ठा होगी, उसी दिन तियानमन चौक की भी पराकाष्ठा होगी और चीन निश्चित टूटकर बिखर जायेगा।

युगवार्ता, नई दिल्ली के 01 से 15 जनवरी 2023 के अंक में प्रकाशित लेख।

डॉ कौस्तुभ नारायण मिश्र
प्रोफेसर एवं स्तम्भकार