ऊष्मा एवं ऊर्जा, सृष्टि के संचालन के आधार हैं और इनका आद्य और आधारभूत नियामक सौर्यमण्डल के अधिष्ठाता देव सूर्य हैं। यही सूर्य वैदिक संस्कृति के भी अधिष्ठाता देव हैं। वैदिक संस्कृति की अधिष्ठात्री देवी माता गायत्री हैं। इसी कारण हम सूर्योपासना में गायत्री मन्त्र का जप करते हैं। ऊर्जा का आरम्भिक तथा सबसे महत्वपूर्ण लक्षण है कि उसका प्रगटीकरण, प्रकाश के रूप में होता है। इसी कारण कोई चीज तेजवान या प्रकाशवान होती या दीखती है। सूर्य देव की इस नैसर्गिकता का मानवीय प्रकटीकरण ‘दीपक’ है, जिसको आप अब अनेक रूपों जैसे बल्ब या मोमबत्ती आदि में भी प्रकट करते हैं। दीपक से लौ निकलती है और यह उत्साह उमंग उल्लास का वातावरण निर्माण करती है; क्योंकि दीपक की लौ ही, दीपक की ऊर्जा का प्रस्फुटन तथा तेज या प्रकाश का कारण होती है। माता लक्ष्मी का जन्मदिन या माता लक्ष्मी एवं भगवान धनवन्तरी का प्रकट होना, भगवान राम का 14 वर्ष बाद अयोध्या आगमन, भगवान कृष्ण द्वारा असुर वध से उपजा उल्लास, राजा बलि को पाताल का राज प्रदान करना, आदि इस प्रकार की तिथियाँ हैं, जो दीपावली से आधिकारिक एवं आध्यात्मिक रूप से जुड़ी हुई हैं। इनका मूल महत्व भी उपरोक्त कारणों से ही है। इन तिथियों पर हमने दीपक जलाकर अपनी प्रसन्नता को प्रदर्शित किया था और उसी सनातनता का अब भी निर्वाह कर रहे हैं। दीपावली से आशय, दीपकों की पंक्ति या पंक्ति में रखे हुए दीपकों से है। शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में प्रत्येक वर्ष मनाया जाने वाला यह प्राचीनतम सनातन त्यौहार है; जो कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है तथा भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। इसीलिये यह आध्यात्मिक रूप से ‘अन्धकार पर प्रकाश की विजय’ को प्रगट करता है। इस अवसर पर रंगोली सजाने, दीपक जलाने, घर की सजावट करने, खरीददारी, पूजा, उपहार, भेंट देने, भोजन और मिठाइयाँ ग्रहण करने और कराने का भी उत्सव होता है।
भारतवर्ष में मनाये जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसी कारण बृहदारण्यक उपनिषद के निम्न मन्त्र को प्रार्थना के रूप में प्रयोग किया जाता है।
असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
अर्थात, असत्य से सत्य की ओर।
अन्धकार से प्रकाश की ओर।
मृत्यु से अमरता की ओर। हे भगवान! हमें, ले चलें।
बृहदारण्यक उपनिषद का यह मन्त्र जीव जगत के लिये उपनिषदों की आज्ञा माना जाना है। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में तथा सिख समुदाय के लोग इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे; जिससे अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा; तदुपरान्त श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाये थे। वह कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की रात्रि थी और वह रात्रि दीपकों की रोशनी से जगमगा उठी थी। तब से आज तक भारतीय और अनिवासी भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। दीपावली प्रकाश के साथ – साथ स्वच्छता का भी पर्व है; क्योंकि जब प्रकाश हो तो, सब स्वक्ष और सुन्दर दिखायी पड़े, यह भाव भी इसमें निहित होता है। दीपक को स्कन्द पुराण में सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है। सूर्य जो जीवन के लिये प्रकाश और ऊर्जा का लौकिक दाता है और जो भारतीय तिथि काल के अनुसार कार्तिक माह में अपनी स्तिथि बदलता है। कुछ क्षेत्रों में दीपावली को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं। नचिकेता की कथा जो सत्य बनाम असत्य, ज्ञान बनाम अज्ञान, स्थायी धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में उल्लेख करता है। नेपाली भाई – बहनों के लिये यह त्यौहार इसलिये महत्वपूर्ण होता है; क्योंकि इसी दिन से नेपाली सम्वत का नया वर्ष आरम्भ होता है। नेपाली संस्कृति के भारतीय संस्कृति से तादात्मय का भी इसी कारण यह त्यौहार है। इस उपलक्ष्य में लोग कार और सोने के गहने आदि महंगी वस्तुएँ तथा स्वयं और अपने परिवारों के लिए कपड़े, उपहार, उपकरण, रसोई के बर्तन आदि खरीदते हैं। लोग अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों को उपहार स्वरुप मिठाइयाँ व सूखे मेवे देते हैं। इस दिन बच्चे अपने माता-पिता और बड़ों से अच्छाई और बुराई या प्रकाश और अन्धेरे के बीच लड़ाई के बारे में प्राचीन कहानियों, कथाओं, मिथकों के बारे में सुनते हैं।
इस दिन धन और समृद्धि की देवी – लक्ष्मी या एक से अधिक देवताओं की पूजा की जाती है। क्योंकि प्रकाश या तेज, समृद्धि को दर्शाता है। धन, जिसे आज लिक्विड मनी और समृद्धि, जिसे आज स्थायी सम्पत्ति कहा जाता है, इन दोनों की अधिष्ठात्री देवी माता लक्ष्मी हैं। पौराणिक दृष्टि से शक्ति की परोक्ष अधिष्ठात्री देवी माता दुर्गा और प्रत्यक्ष अधिष्ठात्री देवी माता काली हैं। पुनः इनके अंगीभूत या एकाकार होने से तीन देवियाँ किसी न किसी रूप में उद्भूत होती हैं- सरस्वती जी (ज्ञान शक्ति की देवी), लक्ष्मी जी (धन समृद्धि शक्ति की देवी) और पार्वती जी (त्याग वैराग्य शक्ति की देवी)। इनको क्रमशः त्रिदेवों – ब्रम्हा जी, विष्णु जी और शंकर जी से जुड़ा देखना चाहिये। सृष्टि की नियामक सत्ता इन्हीं से चलती है। नवरात्रि, दशहरा, दीपावली के पर्वों के तादात्मय भी इनके साथ देखे जा सकते हैं। इसीलिये दीपावली के दिन देवी लक्ष्मी की आराधना की जाती है। भगवान सूर्य और देवी लक्ष्मी के इस रूप को प्रगट करने के कारण ही इस त्यौहार का वैदिक एवं पौराणिक दोनों दृष्टि से समान महत्व परिलक्षित होता है। योग, वेदान्त, और सांख्य दर्शन में भी यह विश्वास है कि इस भौतिक शरीर और मन से परे वहां कुछ है जो शुद्ध, अनन्त और शाश्वत है; जिसे, आत्मन या आत्मा कहा जाता है। दीपावली, आध्यात्मिक अन्धकार पर आन्तरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मन्थन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से आरम्भ होता है; इसी दिन धनवन्तरी जी भी प्रकट हुए थे। दीपावली की रात वह दिन भी है, जब लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे विवाह कीं। लक्ष्मी के साथ-साथ भक्तगण, बाधाओं को दूर करने के प्रतीक गणेश जी; संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती जी और धन के प्रबन्धक कुबेर जी को प्रसाद अर्पित करते हैं। कुछ दीपावली को विष्णु भगवान के वैकुण्ठ में वापसी के दिन के रूप में भी मनाते हैं। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी माता प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन उनकी पूजा करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक दुखों से दूर होकर सुखी रहते हैं।
कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीपक जलाये। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था। इसी कारण अन्धकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का सन्देश देता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाये जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। इसी कारण धार्मिक एवं तीर्थ स्थलों से भी इस त्यौहार का साहचर्य है। इसमें लोक और व्यवस्था दोनों भागीदार बनें, यह सृष्टि का लौकिक संविधान जैसा है। विगत कुछ वर्षों से अयोध्या में भव्य दीपोत्सव राम की पैड़ी पर आयोजित हो रहा है। इस दौरान एक साथ दीपकों के जलने को लेकर भी एक नया रिकॉर्ड रामनगरी अयोध्या बना है। उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने 2017 में अयोध्या में राम की पैड़ी पर दीपोत्सव कार्यक्रम की शुरुआत किया और इस वर्ष सबसे पहले लगभग 180000 दीपक जलाये गये थे। इसी तरह 2018 में 301152; 2019 में 550000 और 2020 में 551000 आदि दीपक जलाये गये और अब यह क्रम अनवरत चल रहा है। कुल मिलाकर दीपावली और दीपोत्सव, अलौकिक उत्स का लौकिक रूप में लोक एवं जीवन दोनों के उन्नयन, संयम, नियम, प्रेम, हर्ष के प्रतीक स्वरूप इस त्यौहार का अस्तित्व बनाता है। इस त्यौहार के द्वारा दैवी आराधना एवं साधना से सूक्ष्म एवं स्थूल, अलौकिक एवं लौकिक, सुख एवं शान्ति, यश एवं वैभव, त्याग एवं वैराग्य आदि सभी भावों को प्रकट करने की मानव में सामर्थ्य और शक्ति पैदा करता है।
यह लेख युगवार्ता, नयी दिल्ली के 16 से 31 अक्टूबर 2022 के अंक में प्रकाशित।
डॉ कौस्तुभ नारायण मिश्र
प्रोफेसर एवं स्तम्भकार
