हिटलर की मौत मरना?

 

हिटलर और कार्ल मार्क्स जर्मनी के थे, कांग्रेसियों का उत्पत्ति स्थान भी इसी के आसपास ठहरता है; इसलिये इस तरह की मौत का हक किसका बनता है? तानाशाही आपातकाल किसने लगाया था? यह तथ्य और इतिहास सबको पता है। सुबोध कान्त सहाय को भारत एवं भारत के इतिहास एवं संस्कृति तथा सभ्यता का ज्ञान नहीं है। भारत में दुश्मन के विषय में भी इस प्रकार का बयान नहीं दिया जाता है! प्रधानमन्त्री के विषय में इस प्रकार का बयान देना, यह प्रमाणित करता है की बयान देने वाले हिटलर, कार्ल मार्क्स, ए ओ ह्युम की वंश परम्परा के हैं। जिस प्रकार की निकटता या सम्बन्ध राहुल की क्वात्रोची से थी; ठीक वही निकटता या सम्बन्ध मोतीलाल का ए ओ ह्यूम से था। ह्यूम की मोती जी के माता – पिता से बहुत ही आत्मीय मित्रता थी। कांग्रेस पार्टी के नेता सुबोध कान्त सहाय द्वारा देश के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के बारे में दिया गया बयान आपत्तिजनक निन्दनीय और कांग्रेस की संस्कार परम्परा का उदाहरण है। श्री नरेन्द्र मोदी जी केवल भारतीय जनता पार्टी के अग्रणी नेता ही नहीं, भारत के प्रधानमन्त्री भी हैं। उनके पीछे करोड़ों मतदाताओं, नागरिकों और भारतीय जनता पार्टी के करोड़ों कार्यकर्ताओं का समर्पण और विश्वास जुड़ा हुआ है।

 

लोकतन्त्र को तार – तार करने वाला सुबोध कान्त सहाय का वह बयान कि- \’नरेन्द्र मोदी हिटलर की राह पर चल रहा है और वह हिटलर की तरह जायेगा…..।\’ अतिशय अपमानजनक और लोकतान्त्रिक संस्था को नष्ट करने वाला है; क्योंकि प्रधानमन्त्री मोदी जी एक चुनी हुई सरकार के अगुआ हैं, जो भारत के संविधान द्वारा निर्धारित प्रावधानों के फलस्वरूप कराये गये चुनाव और संवैधानिक निकाय के सभी मानदंडों को पूरा करते हुए 300 से अधिक सांसदों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। जिन सांसदों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, वे सांसद देश के सत्तर प्रतिशत से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसका आशय यह नहीं है कि शेष आबादी नरेन्द्र मोदी जी को प्रधानमन्त्री नहीं मानती या उनके नेतृत्व में विश्वास नहीं रखती या भारतीय संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करती है! प्रधानमन्त्री, संविधान, लोकतन्त्र का उल्लंघन करने वाला उक्त बयान और उस बयान के साथ खड़े होने वालों की संख्या शायद देश की एक प्रतिशत आबादी भी नहीं होगी। लोकतन्त्र में बहुमत से सरकार बनती है और उसी के अनुसार उसका नेतृत्व करने की संवैधानिक व्यवस्था बनी हुई है; इसलिये नकली गांधियों के किसी चमचे द्वारा दिया गया उक्त बयान प्रथम दृष्टया देश का, देश की बहुसंख्यक आबादी का, देश के बहुसंख्यक नागरिक समाज का, देश के प्रधानमन्त्री का और देश के संविधान का अनादर एवं अपमान है।

 

यह अपमान महात्मा गाँधी के सिद्धान्त \’सत्याग्रह\’ के चबूतरे पर खड़े होकर की गई नौटंकी के परिणामस्वरूप आया है। मैं ही नहीं समूचा देश, पूरा सभ्य समाज, प्रत्येक नागरिक और भारत की सभ्यता और संस्कृति; सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा द्वारा प्रायोजित पल्लवित और पुष्पित सुबोध कान्त सहाय के बयान से देश की छवि और मर्यादा धूमिल एवं आहत हुई है। इनके इस छुद्र एवं गंदे बयान से न केवल नरेन्द्र मोदी जी जैसे वैश्विक राजनेता का मान सम्मान और प्रतिष्ठा और बढ़ी है; बल्कि भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रवादी विचार तथा शक्ति का भी मनोबल, इनकी हताशा निराशा से बढ़ा है। क्योंकि छुद्र शक्तियाँ यदि इस तरह का वक्तव्य देती हैं, तो यह राष्ट्रवाद, नरेन्द्र मोदी जी एवं भारतीय जनता पार्टी के समूचे तंत्र के सामने खड़े कुंठित विपक्ष का अशोभनीय वक्तव्य है। जितना और जिस कठोर शब्द में कांग्रेस के रहनुमाओं, कांग्रेस के रहनुमाओं के चमचों और सुबोध कान्त सहाय की भर्त्सना की जाय, वह कम है। यह बयान नेशनल हेराल्ड मामले से जुड़े कांग्रेसी परिवार के भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में ई डी द्वारा की जा रही पूछताछ से देश का ध्यान भटकाने की साजिश है। अग्निपथ का विरोध भी इसी साजिश का हिस्सा है।

 

डा कौस्तुभ नारायण मिश्र

 

(सद्यः प्रकाश्य)