बीते दिन भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा जी ने विपक्षी नेताओं को उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के कार्यों का हिसाब देने लेने और दूसरी पूर्ववर्ती सरकारों से तुलना की खुली चुनौती दिया। भाजपा अध्यक्ष ने अपनी पार्टी की ‘बूथ विजय अभियान\’ को सम्बोधित करते हुए कहा कि- हमारी पार्टी सपा, बसपा और कांग्रेस के नेताओं को चुनौती देती है कि वे अब तक अपने कार्यकाल की योजनाओं को लेकर सामने आएँ, उनसे हमारे बूथ स्तर के कार्यकर्ता भी खुली बहस के लिये तैयार हैं। उनके ऐसा कहने के पीछे पर्याप्त आधार दीखता है। भाजपा के संगठन की सघन एवं व्यापक संरचना; ऊपर राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर नीचे पन्ना प्रमुख तक के दायित्व का यदि आप विचार करें तो पता चलता है कि भाजपा के किसी एक जिले में मुख्य संगठन के साथ- साथ मोर्चों एवं प्रकोष्ठों सहित बूथ स्तर के दायित्वधारियों की जितनी संख्या और समर्पण है, उतना शायद आज की कांग्रेस सपा बसपा आदि जैसी विपक्षी पार्टियों में पूरे राज्य में उतने दायित्वधारी न कार्यकर्ता होंगे और न ही भाजपा कार्यकर्ताओं जैसा निष्ठा एवं समर्पण ही दीखता है। गौरतलब है कि मतदाता सूची के एक बूथ की मतदाता सूची के एक पन्ने पर जितने लोगों के नाम आते हैं, उनसे सम्पर्क साधने और उन्हें भाजपा के पक्ष में आकर्षित करने के लिये भाजपा ने बूथ प्रमुखों के नीचे \’पन्ना प्रमुखों\’ की भी तैनाती किया है। भाजपा ने आगामी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सत्ता में वापसी का दावा करते हुए ‘ऑनलाइन बूथ विजय अभियान\’ की शुरुआत कर दिया है। भाजपा ने समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश में जो काम सपा, बसपा और कांग्रेस की सरकारें आजादी के बाद साठ साल में नहीं कर पायीं, उससे कहीं ज्यादा उत्तर प्रदेश में भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने पिछले साढ़े चार साल में योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में कर दिखाया है।
इस बात को केवल भाजपा का आरोप नहीं माना जा सकता कि- ‘कांग्रेस, सपा और बसपा ने मिलीभगत करके सिर्फ एक परिवार का भला किया और उनकी सरकारों में अपराध अराजकता भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है; लेकिन अब उत्तर प्रदेश में उसका ठीक उल्टा है। तीनों दलों की सरकारों में जातिवाद, परिवारवाद और तुष्टिकरण की राजनीति न केवल चरम पर थी; बल्कि, कोरोना जैसे संकट काल में इन दलों के नेता कमरे में बन्द रहकर ट्वीट कर राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहे थे। यह सच है कि, उत्तर प्रदेश और इस देश में कुछ ऐसे भी नेता हैं जो संसद सत्र के दौरान छुट्टी मनाने विदेश चले जाते हैं; कोरोना काल में दूसरे दलों के नेता एकान्तवास में चले गये थे या ऐसे संकट काल में चले जाते हैं। आगामी चुनाव में भाजपा स्वाभाविक रूप से इस बात का भी श्रेय लेगी कि उसने, ‘मोदी सरकार के बीते सात साल के कार्यकाल में जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला प्रावधान सम्बन्धी सम्विधान के अनुच्छेद 370 समाप्त को समाप्त किया; तीन तलाक खत्म करने का उपक्रम किया; राम जन्मभूमि मन्दिर का निर्माण कार्य आरम्भ किया। इतना ही नहीं वर्तमान केन्द्र सरकार के नेतृत्व में देश की सेना द्वारा देशहित में तीन सर्जिकल स्ट्राइक भी देश की जनता ने देखा है। उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरुआत में विधान सभा चुनाव होने हैं। ओवैसी ने ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से गठबन्धन किया है और ओवैसी ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी यूपी चुनाव में लगभग सौ उम्मीदवार उतारेगी। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे राज्य में राजनीतिक चहलकदमी बढ़ने लगी है तथा राजनीतिक बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी तेज हो गया है। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने इसी कड़ी में सांसद असदुद्दीन ओवैसी के बहाने सत्तारूढ़ बीजेपी पर निशाना साधा है। लेकिन राकेश टिकैत की हकीकत और अलोकप्रियता की स्थिति का अंदाजा केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि, वे एक बार विधानसभा का और एक बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं और दोनों चुनावों में उनकी जमानत जब्त हो चुकी है। तथ्य एवं आकंड़े इस बात के साक्षी हैं कि राकेश टिकैत सस्ती गन्दी राजनीति के एक मोहरे के अलावा और कुछ नहीं है; जिनका किसान आन्दोलन एवं किसान राजनीति से दूर- दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं हैं। तात्पर्य यह कि राकेश टिकैत जैसों के भरोसे भी विपक्ष की राजनीति किसी घाट नहीं लगने वाली है; आगामी विधानसभा चुनाव में प्रत्यक्षतः यह दिख रहा है।
बागपत में एक सभा को सम्बोधित करते हुए राकेश टिकैत ने कहा- \’बीजेपी के \’चाचाजान\’ असदुद्दीन ओवैसी अब यूपी में आ चुके हैं, सभाएँ कर रहे हैं; लेकिन अगर वो बीजेपी को गाली देंगे तो वो लोग भाजपा के खिलाफ ओबैसी के बयान पर केस दर्ज नहीं करायेंगे, वो सभी एक टीम के हिस्से हैं।\’ लेकिन राकेश टिकैत जी तब कहाँ थे, जब स्कूल से आ रही एक जाठ लड़की से छेड़खानी रोकने की कोशिश में लड़की के भाई एवं एक रिश्तेदार को पकड़कर एक समुदाय विशेष के लोगों द्वारा काट डाला गया। उस समय सपा की सरकार थी, सरकार द्वारा खून से सने हत्यारों को जबरदस्ती छोड़वाया गया और राकेश टिकैत उन हत्यारों के साथ खड़े थे। लोगों की प्रतिक्रिया, जिसे दंगा कह दिया गया तो, बाद की बात थी। इसलिये मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर टिकैत द्वारा फैलाये जा रहे झूठ के कारण भी टिकैत जाठ समुदाय के कोपभाजन बनें हैं। मुजफ्फरनगर महापञ्चायत के बाद राकेश टिकैत राज्य के अलग-अलग इलाकों में जाकर बीजेपी के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा सरकार सड़कें, बन्दरगाह, फैक्ट्रियाँ बेचने में लगी हुई हैं। जबकि सच यह है कि राकेश टिकैत स्वयं कृषि नीतियों की पहले प्रसंशा और तुष्टिकरण एवं बरगलाने की राजनीति के तहत विषवमन कर रहे हैं; जिसका समय के साथ क्रमशः भेद खुलता जा रहा है। टिकैत जैसों के तुष्टिकरण पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री जी का \’अब्बाजान\’ वाला बयान काफी सटीक नजर आता है। क्या यह नहीं लगता कि उसी तुष्टिकरण को भुनाने और आगे बढ़ाने का काम उत्तर प्रदेश में ओबैसी कर रहे हैं और विपक्षी दलों से उनके आन्तरिक एवं दिली गठजोड़ है। तुष्टिकरण, भ्रष्टाचार, अपराध की राजनीति का असर यह है कि, पहले सपा ने \’बाहुबली\’ मुख्तार अंसारी को संरक्षण दिया; उसके बाद बसपा प्रमुख ने संरक्षण दिया; उसी बीच पंजाब ले जाकर जेल में कांग्रेस ने संरक्षण दिया और अब जब बसपा ने टिकट काटा है तो ओवैसी की पार्टी ए आई एम आई एम मैदान में संरक्षण देने को कूदकर टिकट का ऑफर दे दिया है। अब कोई भी यह सोच सकता है कि किसका किससे गठजोड़ है; कौन तुष्टिकरण कर रहा है और कौन किसका चचाजान है? इसी क्रम में असदुद्दीन ओवैसी ने भड़काऊ साम्प्रदायिक बयान भी दिये हैं तथा प्रधानमन्त्री जी एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री जी पर अभद्र टिप्पणी भी किये हैं। एक सवाल अभी भी जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोग और विशेषकर जाठ समुदाय के लोग टिकैत से पूछ रहे हैं कि, मुजफ्फरनगर दंगे के वक्त टिकैत कहाँ छिपे थे? और छिपे नहीं थे तो बाहर किसके साथ खड़े होकर क्या बयान दे रहे थे?
जैसा कि कांग्रेस नेत्री और परिवारवाद की एक और कड़ी प्रियंका वाढरा ने कहा है कि- \’सिर्फ कांग्रेस के लिये ही नहीं बल्कि देश निर्माण के लिये भी मजबूत संगठन की जरूरत होती है।\’ लेकिन उनके व्यवहार से प्रतीत होता है कि यह बात स्वयं उनके ऊपर लागू नहीं होती है। लखनऊ में कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय में प्रियंका ने क्रमिक बैठकों में संगठन की समीक्षा के साथ-साथ जमीनी रुझानों एवं चुनावी रणनीति पर काल्पनिक मन्थन भी किया है। उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिये संगठन निर्माण पर जोर दिया है; लेकिन परिवारवाद एवं तुष्टिकरण जैसी अपनी वास्तविक नाकामियों को छिपाने की कोशिश भी कर रही हैं। प्रियंका ने अपने पदाधिकारी से रिपोर्ट व फीडबैक प्राप्त किया और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, रूहेलखण्ड, मध्य एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों की ब्लाक तथा न्याय पंचायतों की समीक्षा तो किया; लेकिन अपने भाई के अमेठी से वायनाड के कार्यों की समीक्षा करने से बचती रहीं। इस परिवार के इस समय के ही नहीँ, पहले की भी रीति रही है कि अच्छा राजनीतिक परिणाम आने पर उसका श्रेय परिवार लेता है और खराब आने पर उसका ठीकरा पार्टी के दूसरे नेताओं और कार्यकर्ताओं पर फोड़ दिया जाता है। प्रियंका गांधी ने अपने कार्यकर्ताओं से यह तो कह दिया कि, \’उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव बिल्कुल नजदीक हैं, इसलिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं को दिन-रात कार्य करने की जरूरत है।\’ लेकिन अब तक किन लोगों के किन कार्यों से कांग्रेस पार्टी इस दुर्दशा को प्राप्त हुई है? उसका ब्यौरा नहीं दिया। टिकट बँटवारे पर उन्होंने कहा कि, \’उम्मीदवारों के नाम तय करने की प्रक्रिया में संगठन के पदाधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी और संगठन का काम अब आखिरी चरण में पहुँच चुका है।\’ महत्वपूर्ण भूमिका, आखिरी चरण के आशय पर यदि आप विचार करें पायेंगे कि कांग्रेस में इस समय महत्वपूर्ण केवल सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी एवं प्रियंका गया गाँधी हैं और पार्टी का संगठन समाप्त होने के कगार पर है। केन्द्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध के मुद्दे पर भी उन्होंने चर्चा किया। जिस कृषि कानून के लिये स्वयं मनमोहन सिंह जी की सरकार बेचैन थी, लेकिन अपनी अदूरदर्शिता के कारण कर नहीं पायी थी। कांग्रेस की परिवारवादी राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका के नेतृत्व में गांवों और कस्बों से बारह हजार किलोमीटर लम्बी यात्रा निकालने का भी फैसला किया है और बताया गया है कि यात्रा की रूपरेखा तैयार की जा रही है। रूपरेखा तैयार की जा रही है? बड़ा सवाल है। इन परिस्थियों में गुमनामी, अदूरदर्शिता एवं अलोकप्रियता का दंश झेल रहा कांग्रेसी परिवार और गुमनाम से प्रदेश अध्यक्ष, जिनकी एक जिले से बाहर कोई पहचान नहीं है; के भरोसे कांग्रेस आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा में कुछ हासिल कर पायेगी? यक्ष प्रश्न है और ऐसे प्रश्न भी भाजपा के उज्जवल भविष्य का संकेत दे रहे हैं।
जैसा कि आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया ने कहा है कि, यदि उत्तर प्रदेश में सरकार बनी, तो चौबीस घण्टे में तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त कर देंगे तथा उत्तर प्रदेश में महंगे बिजली के बिलों से मुक्ति दिलाने के सम्बन्ध में जनता को गुमराह करने वाला एवं महत्वपूर्ण घोषणा किया। जैसा कि ज्ञात है कि, उत्तर प्रदेश के सम्भावित उम्मीदवारों की सूची आम आदमी पार्टी ने जारी कर दिया है। कहने के लिये विधानसभा चुनाव में आप पूरी ताकत के साथ उतरने की तैयारी में है और आम आदमी पार्टी ने 100 विधानसभा सीटों के लिये नाम तय कर लिये हैं। सम्भावित उम्मीदवारों की इस पहली लिस्ट में पिछड़े वर्ग के 35 प्रतिशत लोगों को जगह दिया है। आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद ने बीते दिनों 34 सदस्यीय कार्यकारी निकाय का चुनाव किया, जिसमें दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल भी शामिल हैं। राष्ट्रीय परिषद की बैठक को सम्बोधित करने वाले केजरीवाल ने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी टिकट और पदों की आकांक्षा के बजाय समाज और देश के लिये काम करके अपनी योग्यता साबित करने के लिये कहा है। लेकिन स्वयं का अहंकार, परिवारवाद और पंजाब में आप की स्थिति को देखते हुये केजरीवाल के प्रति पार्टी के अन्दर जो असन्तोष पनप रहा है, वह इसको कहाँ ले जायेगा? इसका भी उत्तर प्रदेश के अधिकांश लोगों को पता है। लोग इस बात से भी परिचित हो चले हैं कि, दिल्ली में मुफ्तखोरी के नाम पर अव्यवस्था अराजकता तथा तुष्टिकरण के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है, वह निकट भविष्य में कितना खतरनाक होने वाला है! वर्तमान केन्द्र की नरेन्द्र मोदी जी सरकार एवं उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ जी की सरकार की उज्जवला, आवास, स्वक्षता आदि जैसी जनकल्याणकारी योजनाओं के कारण समाज में परस्पर- निर्भरता एवं आत्म- निर्भरता का जो वातावरण बना है; उससे अब लोग मुफ्तखोरी एवं अकर्मण्यता में जीने के बजाय सक्षम एवं कर्मठ जीवन जीने के दिशा में जा रहे हैं। वास्तव में किसी भी सरकार का महत्वपूर्ण दायित्व है कि वह अपने नागरिकों को कैसे अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की दृष्टि से सक्षम बनाये; न कि सरकार उन पर कृपा करके खैरात बाँटती रहे हैं और जनता सरकार के पीछे असहाय होकर निहारती रहे!
जैसा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री जी ने कहा है कि- \’पिछली सरकारों में प्रदेश में बहन, बेटियाँ, भैंस और बैल भी असुरक्षित थे; किन्तु अब ऐसा नहीं है। जनता एवं बहू- बेटियों की इज्जत की कोई कीमत नहीं थी, अब बीते चार सालों में यह स्थिति काफी बदल चुकी है और अब यहाँ के लोग सम्मान का जीवन जी पा रहे हैं।\’ जैसा कि जनता दल यूनाइटेड के नेता के सी त्यागी ने कहा है कि- \’उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में उतरेगी और यदि भाजपा ने सम्मानजनक सीटें नहीं दिया तो अकेले चुनाव लड़ेंगे।\’ वास्तव में इस बयान का कोई अर्थ नहीं है, जब तक कि नीतीश कुमार जी अपनी तरफ से न कुछ कहें। ओबैसी ने कहा है कि, \’अखिलेश और मायावती की नासमझी की वजह से नरेन्द्र मोदी दो बार प्रधानमन्त्री बने हैं और इसी का परिणाम सपा और बसपा भुगत रही हैं।\’ असदुद्दीन ओवैसी अयोध्या ने रूदौली से आगामी विधानसभा चुनाव के लिये अपनी पार्टी के अभियान की शुरुआत करने के बाद सुल्तानपुर में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुये उक्त बातें कहा। उन्होंने उत्तर प्रदेश के अपने दौरे के दौरान विरोधियों के उन आरोपों को खारिज कर दिया जिसमें \’उन्हें सपा बसपा की तुष्टिकरण की हताशा निराशा के कारण राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में वोट काटने वाले के रूप में पेश किया गया था।\’ ओवैसी ने कहा- \’कहा जाता है़ ओवैसी लड़ेगा तो वोट काट देगा।\’ उन्होंने सवाल किया, ‘सुलतानपुर में आप सबने अखिलेश यादव को झोली भर कर वोट दिया तो यहाँ से भाजपा के विधायक कैसे जीते?\’ बीते लोकसभा के चुनाव में सुलतानपुर से भाजपा कैसे जीती? तब तो ओवैसी तो चुनाव नही लड़ रहा था! क्या आप लोगों ने अखिलेश यादव से यह सवाल किया कि- \’हिन्दुओं ने वोट नही किया इसलिये हारे? अखिलेश यादव क्यों मुसलमानों को कहते हैं कि उन लोगों ने वोट नहीं दिया! क्या मुसलमान कैदी है?\’ ओवैसी ने परोक्ष रूप से यह भी बता दिया कि, ‘दो बार भाजपा मुसलमानों के वोटों से नहीं जीती है़ और सपा बसपा कांग्रेस का तुष्टिकरण का खेल नहीं चलेगा।\’ ओबैसी ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पर तीखा हमला करते हुये पूछा है कि- \’क्या मुसलमान आपके गुलाम हैं?\’
वर्तमान समय में समाजवादी पार्टी के पास नेता के नाम पर केवल एक नाम अखिलेश यादव जी का है; जिनका अहंकार या स्वाभिमान लोकप्रियता और दूरदर्शिता का नहीं, परिवारवाद के कारण छीनकर पायी गयी विरासत के कारण है। अखिलेश जी को शायद यह बात नहीं पता कि, भारत में और वह भी उत्तर भारत किसी भी पुत्र द्वारा पिता को अपमानित करके छीनी गयी विरासत को कितना बुरा माना जाता है! सार्वजनिक मन्चों पर मुलायम सिंह यादव जी का जो अपमान अखिलेश जी ने किया है, वह भी एक बड़ा कारण है कि उनकी जमीन खिसक चुकी है तथा जातिवाद आदि जैसे हथकण्डों को मोदी जी ने तोड़कर एकजुट भाजपा के पीछे खड़ा कर दिया है। अब सपा में मुलायम सिंह यादव, जनेश्वर मिश्र, आजम खान, अमर सिंह आदि जैसे नेता नहीं रहे और न ही इनकी अगली पीढ़ी खड़ी हो पायी है। जहाँ तक बसपा का सवाल है, अपने अहंकार पूर्वाग्रह एवं परिवारवादी राजनीति के कारण बहन मायावती जी ने भी अपनी पार्टी को कहीं का नहीं छोड़ा है। टिकट के नाम पर चुनावों में अपने प्रत्याशियों से बोली लगाकर की गयी वसूली अब उन्हीं को भारी पड़ रही है और बताया जाता है कि 2016 की नोटबन्दी का सबसे बड़ा नुकसान उत्तर प्रदेश में बहन मायावती और बसपा को ही उठाना पड़ा है और उससे अब उनकी कमर टूट चुकी है। जहाँ तक सतीश चन्द्र मिश्र के ब्राह्मण सम्मेलन का सवाल है, वह ढाँक के तीन पाँत के अलावे और कुछ नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों का यह सवाल जायज है कि 2007 के विधानसभा चुनाव में यदि सतीश मिश्र के कारण ब्राह्मणों ने बसपा को वोट दिया तो सतीश मिश्र ने अपने परिवार के बाहर किन लोगों का क्या भला किया? बसपा में नेता के नाम पर कागज पर लिखकर बाँचने वाली नेता के रूप में बहन जी के अलावा कोई और नहीं है; सतीश चन्द्र मिश्र खर्च हो चुके नेता हैं। यह बात विपक्ष को नहीं भूलना चाहिये कि, भाजपा में नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, नड्डा, योगी आदित्यनाथ, स्वतन्त्रदेव सिंह जैसे न केवल करिश्माई नेता हैं; बल्कि बी एल सन्तोष एवं सुनील बंसल जैसे सांगठनिक चाणक्य भी हैं और जमीन पर उतरकर कार्य करने वाले संघ एवं उसके दर्जनों आनुषंगिक संगठन भी भाजपा की पीठ पर हाथ धरे बैठे हैं। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा एवं जनता के उज्जवल भविष्य के अलावा क्या कुछ दूसरा दिखायी पड़ता है?
डॉ कौस्तुभ नारायण मिश्र
नोट:
*सत्यपरख भारत* के सितम्बर 2021 www.satyparakhbharat.com के अंक में \’विशेष\’ कालम के अन्तर्गत प्रकाशित कौस्तुभ नारायण मिश्र *उत्तर प्रदेश का चुनावी भविष्य* विषयक लेख।
