प्रधानमन्त्री नरेन्द्र भाई मोदी जी ने वित्तमन्त्री जी को पेट्रोलियम उत्पादों को जी एस टी में शामिल करने का निर्देश दिया और सभी राज्यो के वित्तमन्त्रियों को इस हेतु निमन्त्रण भेजने को कहा है; सबसे पहली विरोध प्रतिक्रिया महाराष्ट्र सरकार (शिवसेना+ एन सी पी + कांग्रेस) की आयी है। इससे पेट्रोल डीजल महँगायी की कल्पित कथाएँ कहने वालों सभी विपक्षी दलों की जमीन आखिर क्यों खिसक रही है?
राज्य सरकारें 63 प्रतिशत तक पेट्रोलियम पदार्थों में टैक्स वसूल रही हैं, जो जनता को पता ही नही है। केन्द्र सरकार 100 रूपये के पेट्रोल पर 16 रूपये टैक्स ले रही है; जो अलग अलग योजनाओं में सीधे व्यय किया जाता है। अब जी एस टी के दायरे में आते ही पेट्रोल की कीमत 65 से 70 रुपये लीटर हो जायेगा। तो कई राज्य सरकारों को पेट दर्द हो रहा है? महाराष्ट्र सरकार (शिवसेना+ एन सी पी + कांग्रेस) 38 से 39 रूपये तो केवल वैट ही वसूल रही है।
अब जी एस टी के सिस्टम में 50- 50 प्रतिशत का सिस्टम तय है; इसलिये 16 से 17 रुपये के ऊपर टैक्स वे नहीं ले पायेंगे। इससे गैर- भाजपा शाषित राज्यों की पोल खुलती जा रही है। महँगाई से परेशान जनता को पेट्रोल पूरे भारत में एक ही भाव से मिले, इसलिये केन्द्र सरकार प्रतिबद्ध है पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 25 से 40 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। साथ ही पेट्रोल और डीजल के भाव कम होने से मँहगाई पर सीधे 30 से 40 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। डीजल की दर घटने से रोडवेज के ट्रक टेम्पो में आते फल सब्जी अनाज और दूसरी सभी एवं कृषिगत उत्पाद भी सस्ते हो जायेंगे।
पेट्रोल और डीजल के भाव के लिये मोर्चा निकालने वाली शिवसेना क्यों चुप है और कांग्रेस शाषित राज्यों को क्या आपत्ति है? राजस्थान, दिल्ली, बंगाल, उड़ीसा, तेलंगाना, केरल, महाराष्ट्र की सरकार के वित्तमन्त्रियों को क्या और किस तरह के कष्ट हैं? वे जी एस टी काउन्सिल की मीटिंग को क्यों अटेण्ड नहीं करना चाहते हैं? दशकों से सब्सिडी और टैक्स के नाम पर खुली लूट मचाने वाली सभी सरकारें पेट्रोल एवं डीजल में एक समान टैक्स लागू होने के बाद पेट्रोल डीजल का क्या भाव होगा, वे क्यों नहीं बताती हैं?
