समन्वित अथवा समेकित अथवा समग्र विकास से आशय \’समृद्धि\’ एवं \’संतुष्टि\’ के समन्वय से है। इन्हें स्थूल और सूक्ष्म विकास के समन्वय से भी समझा जा सकता है। यदि ये दोनों एक साथ बिना टकराव के समान्तर गति से चल रहे हैं तो समझिये आप विकासमान हैं; अन्यथा आप गलतफहमी में हैं। उदाहरण के लिये एक ऐसे व्यक्ति की कल्पना कीजिये, जिसके पास अकूत धन, महंगी गाड़ी, बड़े बंगले, वातानुकूलन के सभी सामान, नौकर- चाकर, खाने- पीने के सभी उच्चतम चीजें हों; लेकिन चिकित्सक ने उन्हें कड़े विस्तर या चौकी या दीवान पर केवल एक पतली दरी बिना तकिया (पिलो) के छत पर या नीब के पेड़ के नीचे या खुले में सोने को कह दिया हो; कह दिया हो कि आपको दो सादी चपाती करेले या लौकी की सब्जी से केवल दो बार खानी है और गाय या बकरी का एक कप कच्चा दूध पीना है, आदि! तो फिर उनकी समृद्धि का औचित्य? ऐसा इसलिये होता है; क्योंकि कोई संतुष्टि एवं समृद्धि को एक साथ लेकर नहीं चलता है। एक दूसरे उदाहरण की कल्पना कीजिये, जब एक मजदूर दिन भर काम करके, शाम को भर पेट खाकर, फुटपाथ पर गहरी नींद सोता है, न उसे मच्छर काटने का भय, न उसे गर्मी लगने या पसीने होने से परेशानी! आप कल्पना कीजिये कि किसी पहाड़ या जंगल या किसी नदी की तलहटी में कोई व्यक्ति एक कम्बल के सहारे, कुछ कंदमूल फलफूल खाता हो और शाम को पुनः कुछ खाने पीने की कोई निश्चित व्यवस्था न हो; फिर भी आनन्द एवं प्रसन्नता से जीवन चल रहा हो। आप क्या कहेंगे? इन तीनों परिस्थियों को? या ऐसी ही अन्य परिस्थितियों को? जो केवल सन्तुष्ट होकर रह लेना चाहता है, उसे समृद्धि नहीं मिल सकती और जो केवल समृद्धि की इच्छा रखता है, उसे संतुष्टि नहीं मिल सकती। यहां यह बात ध्यान रखिये कि लोक या संसार या लौकिक जगत या मानव या जीव जगत, इनमें से केवल किसी एक के सहारे नहीं चल सकता है; यदि चलेगा तो उसकी आयु लम्बी नहीं होगी।
दुनिया अर्थात भारत के बाहर केवल समृद्धि को विकास का आधार माना गया है और इसीलिये वहां केवल इस बात पर ध्यान रहता है कि समृद्धि कितनी, किसका, कैसा? संसाधन कितना, किसका, कैसा? सम्पत्ति कितना, किसका, कैसा? आदि। भारत में ऐसा नहीं है और न ऐसा था; आज भारत में जो भी विसंगति है, वह इसी बाहरी की नकल करने के कारण है कि यहां भी कुछ लोगों ने वही करना चाहा, जो भारत के बाहर होता रहा है। पूर्वांचल उत्तर प्रदेश में कुछ येसे नगरीय केन्द्र हैं, जो समृद्धि के; कुछ येसे केन्द्र हैं, जो संतुष्टि के और कुछ ये केन्द्र हैं, जो संतुष्टि एवं समृद्धि दोनों के केन्द्र हैं। पूर्वांचल के काशी (सारनाथ सहित), अयोध्या (फैजाबाद सहित), गोरखपुर, कुशीनगर येसे केन्द्र हैं, जो संतुष्टि एवं समृद्धि दोनों के केन्द्र हैं। जहां तक विकास का प्रश्न है, इन चारों केन्द्रों को उत्तर प्रदेश सरकार, विकास के इस समीकरण को तेजी से गतिमान कर रही और ये केन्द्र समग्र विकास की तरफ अग्रसर हैं। समग्र विकास के आयाम का आधारभूत या प्रथम चरण का क्षेत्र भोजन, वस्त्र, मकान; विकास का मुख्य आयाम या द्वितीय चरण का क्षेत्र चिकित्सा एवं शिक्षा और विकास का प्रमुख क्षेत्र परिवहन, संचार हैं। पूर्वांचल के समग्र विकास से जुड़े केन्द्रों में कुशीनगर जैसे ऐतिहासिक सांस्कृतिक केन्द्र की स्थिति काफी कमजोर रही है; पूर्व की सरकारों ने इस पर बहुत कम या नहीं के बराबर ध्यान दिया। सन 2014 में केन्द्र में मोदी जी की सरकार आने के बाद और 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जी की सरकार आने के बाद उपरोक्त त्रिस्तरीय विकास की गति कुशीनगर में तीव्र से तीव्रतर हो गयी और होती जा रही है। सन 2017 के पहले और आज की कुशीनगर के चित्र में बड़ा अन्तर देखा जा सकता है। आज यहां मेडिकल कालेज बन रहा है; अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है; बौद्ध तीर्थ स्थल की दृष्टि से अनेक परियोजनाएं या तो कार्यसूची में चल रही हैं या विचाराधीन हैं। रेलवे लाइन और स्टेशन के साथ साथ यहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अध्ययन एवं शोध संस्थान की भी जरूरत है।
यहां एक येसे संस्थान की जहां समाज विज्ञान, विज्ञान शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा आदि सहित शिक्षा एवं ज्ञान के सभी अनुशासनों की व्यवस्था हो और उसकी उपयोगिता सिद्ध हो सके। वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार इस दिशा में भी कार्य करने की योजना में भी है; जिससे समग्र विकास की यहां स्थायी आधारशिला न केवल स्थापित हो जायेगी, बल्कि उसका प्रवाह तीव्र हो जायेगा। राज्य के संसाधन, नीतिगत प्रोत्साहन, अवस्थापनात्मक सुविधाओं तथा अन्य विभिन्न क्षेत्रों जैसे – कृषि आधारित खाद्य प्रसंस्करण, पर्यटन और जैव प्रौद्योगिकी में निवेश के लिये उपयुक्त अवसर उत्तर प्रदेश में उपलब्ध हुए हैं, इसका भी कृषि प्रधान परिक्षेत्र वाले कुशीनगर को लाभ मिलेगा। पूर्वांचल में अच्छी तरह से विकसित सामाजिक, भौतिक और औद्योगिक बुनियादी ढांचा खड़ा हुआ है, इसका भी कुशीनगर को सीधा लाभ मिलने जा रहा है। इतना ही नहीं, राज्य राजमार्गों का भी यहां व्यापक गुणात्मक एवं मात्रात्मक विस्तार हुआ है। पेयजल, आवासीय भवन निर्माण, स्वक्षता अभियान, उज्जवला योजना जैसी अनेक केन्द्रीय एवं राज्य सरकार की योजनाओं का व्यापक नियोजन द्वारा उन्हें लागू किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने स्टार्टअप नीति, 2020 भी पारित किया है। उत्तर प्रदेश पूर्वांचल के इस कुशीनगर जैसे पिछड़े केन्द्रों को भी व्यापक लाभ मिलने की उम्मीद है। जैसा कि स्पष्ट है कि राज्य के प्रत्येक जिले में न्यूनतम एक इनक्यूबेटर स्थापित करना / समर्थन करना और कम से कम 10,000 स्टार्टअप के लिये एक पारिस्थितिकी तन्त्र बनाने का लक्ष्य पूरा करना है; इसलिये भी कुशीनगर के समग्र विकास की अब पूर्ण एवं व्यवस्थित योजना लगभग स्थापित हो चुकी है। उपरोक्त विवेचन से कोई भी स्वतः समझ सकता है कि, समृद्धि या संरचनात्मक विकास केवल शरीर को सुख प्रदान कर सकता है; लेकिन संतुष्टि पाने के लिए वस्तुगत विकास की कोई आवश्यकता नहीं होती। वस्तुगत विकास ही वस्तुगत अधिकार की मांग करता है और वही संघर्ष का कारण बनता है। किसी भी व्यक्ति, किसी भी समाज और यहां तक कि किसी भी देश का विकास सहयोग एवं संघर्ष दोनों से होता है। वस्तुगत विकास, संघर्ष की मांग करता है; क्योंकि वहां अधिकार भाव जागृत होता है। संतुष्टि, त्यागमय भाव है और इसी कारण यह संघर्ष की अपेक्षा सहयोग को महत्वपूर्ण मानता है। अवस्थापनात्मक सुविधाओं के विकास के साथ साथ यदि; कोई सरकार स्वक्षता, निर्मलता, प्रेम, भाईचारा, दया, निर्मल पावन गंगा आदि का भाव पैदा करने वाले योजना एवं कार्यक्रम यदि कोई सरकार ले आती है; इसका आशय है कि वह समग्र विकास की पोषक है। यदि कोई सरकार समान नागरिक संहिता, समान नागरिक कानून, भेदभाव रहित समाज निर्माण, प्रकृति से सहकार स्थापित करने वाले कार्यक्रम चला रही है तो इसका आशय है कि वह समग्र विकास की दिशा में है। उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार, केन्द्र सरकार की ही तरह समग्र विकास अर्थात नागरिक समाज के संतुष्टि एवं समृद्धि को दृष्टिगत रखते हुए जो कार्य कर रही है और यह हुबहू पूर्वांचल के कुशीनगर केन्द्र एवं जनपद में भी चरितार्थ हो रहा है।
डा कौस्तुभ नारायण मिश्र
युगवार्ता, नई दिल्ली के 16 से 31 जुलाई 2022 के अंक में नजरिया स्तम्भ में प्रकाशित।
