साहिब! \”दिल्ली आने – जाने तक के पैसे नही हैं; कृपया पुरुस्कार डाक से भिजवा दें!\” उक्त बातें किसी और ने नहीं, सच्चे अर्थों में भारत सरकार द्वारा \’पद्मश्री\’ से सम्मानित करने के लिये चयनित उड़ीसा के एक व्यक्ति श्री हलधर नाग जी के हैं। हलधर नाग वह नाम है, जिनके नाम के आगे कभी श्री नहीं लगाया गया या श्री लगाने लायक नहीं समझा गया। हो सकता है कि मैं पहला व्यक्ति हूं, जिसने उनके नाम के पहले श्री और नाम के बाद जी, भी लगाया है। इनके पास केवल 3 जोड़ी कपड़े; एक टूटी रबड़ की चप्पल; एक बिन कमानी का चश्मा और जमा पूंजी 732 रुपया के मालिक जैसे लोग भी अब भारत में 2014 के बाद से पद्मश्री पद्मभूषण पद्मविभूषण से विभूषित किए जाने लगे हैं। इसके पहले इन पुरस्कारों की भी कैसी – कैसी बन्दरबांट हुई है, देश ने देखा है। हलधर नाग जी, कोसली भाषा के प्रसिद्ध कवि हैं। मुख्य बात यह है कि उन्होंने अब तक जो भी कविताऐं और 20 महाकाव्य, अभी तक लिखे हैं, वे सब उन्हें जबानी याद हैं।
अब सम्भलपुर विश्वविद्यालय में उनके लेखन के एक संकलन ‘हलधर ग्रन्थावली-2’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा रहा है। सादा लिबास, सफेद धोती, गमछा और बनियान पहने, प्रायः नंगे पैर चलने वाले व्यक्ति का नाम है श्री हलधर नाग जी! ऐसे हीरा किसी चैनलवाले या किसी अखबार वाले ने नहीं, मोदी सरकार ने पद्मश्री के लिये खोज के निकाला है। उड़िया लोककवि हलधर नाग के बारे में जब आप जानेंगे तो प्रेरणा से ओतप्रोत हो जायेंगे। हलधर एक अतिशय गरीब दलित परिवार से आते हैं। दस साल की आयु में माता – पिता के देहान्त के बाद उन्होंने तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ दिया था। अनाथ की जिन्दगी जीते हुये ढाबा में जूठे बर्तन साफकर कई साल उन्होंने बचपन के गुजारे; बाद में एक स्कूल में रसोई की देखरेख का काम मिला। कुछ वर्षों बाद बैंक से रुपया 1000 कर्ज लेकर पेन-पेंसिल आदि की छोटी सी दुकान उसी स्कूल के सामने खोल लिया; जिसमें वे छुट्टी के समय या अवकाश मिलने पर कुछ समय (पार्टटाईम) बैठ जाते थे। यही उनकी अर्थव्यवस्था थी।
जहां तक उनकी साहित्यिक विशेषता का प्रश्न है; श्री हलधर नाग जी ने 1995 के आसपास स्थानीय उडिया भाषा में \’राम-शबरी\’ जैसे कुछ धार्मिक प्रसंगों पर लेख और कविताऐं लिखकर लोगों को सुनाना शुरू किया। भावनाओं से पूर्ण कवितायें लिख जबरन लोगों के बीच प्रस्तुत करते – करते वो इतने लोकप्रिय हो गये कि इस साल भारत के राष्ट्रपति ने भारत सरकार की अनुशंसा पर उन्हें साहित्य के लिये \’पद्मश्री\’ प्रदान किया। इतना ही नहीं 5 शोधार्थी अब उनके साहित्य पर पी-एच डी कर रहे हैं; जबकि स्वयं हलधर तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई किये हैं। कहते हैं कि, अनेक बार आप किताबों में प्रकृति को देखते और चुनते हैं; लेकिन इस बार पद्मश्री ने, प्रकृति से किताब को चुना है। नमन है ऐसी विभूति को जिनका लक्ष्य धन अर्जन नहीं; बल्कि ज्ञानार्जन हैं। नागजी ने काव्यों की रचना कर साहित्य जगत को समृद्ध किया है। सही अर्थों में एसे ही लोग प्रज्ञा, विद्या, विज्ञान, ज्ञान के निकले \’विद्वान\’ कहलाने के अधिकारी हैं।
डा कौस्तुभ नारायण मिश्र
